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Todays Avyakt Murli : 29/12/24

 

आज नव युग रचता, नव जीवन दाता बापदादा नव वर्ष मनाने आये हैं। आप सभी भी नव वर्ष मनाने आये हो वा नव युग मनाने के लिए आये हो? नव वर्ष तो सभी मनाते हैं लेकिन आप सभी नव जीवन, नव युग और नव वर्ष तीनों ही मना रहे हो। बापदादा भी त्रिमूर्ति मुबारक दे रहे हैं। नव वर्ष की एक दो को मुबारक देते हैं और साथ में कोई न कोई गिफ्ट भी देते हैं। गिफ्ट देते हो ना! लेकिन बापदादा ने आप सबको कौन सी गिफ्ट दी है? गोल्डन दुनिया की गिफ्ट दी है। सभी को गोल्डन दुनिया की गिफ्ट मिल गई है ना! जिस गोल्डन दुनिया में, नव युग में सर्व प्राप्तियां हैं। याद है अपना राज्य? कोई अप्राप्ति का नाम-निशान नहीं है। ऐसी गिफ्ट सिवाए बापदादा के और कोई दे नहीं सकता। सारे विश्व में अगर कोई बड़े ते बड़ी सौगात देंगे भी तो क्या देंगे? बड़े ते बड़ा ताज वा तख्त दे देंगे। जब स्थापना हुई थी, (आगे-आगे बैठे हैं स्थापना वाले) तब आदि में ही ब्रह्मा बाप बच्चों से पूछते थे कि अगर आपको आजकल की कोई भी रानी ताज और तख्त देवे तो आप जायेंगे? याद है ना! तो बच्चे कहते थे इस ताज और तख्त को क्या करेंगे, जब बाप मिल गया तो यह क्या है! तो इस गोल्डन वर्ल्ड की गिफ्ट के आगे कोई भी गिफ्ट बड़ी नहीं हो सकती। कई बच्चे पूछते हैं वहाँ क्या-क्या प्राप्ति होगी? तो बापदादा कहते हैं प्राप्तियों की लिस्ट तो लम्बी है लेकिन सार रूप में क्या कहेंगे! अप्राप्त कोई नहीं वस्तु, जो जीवन में चाहिए वह सब प्राप्तियां होंगी। तो ऐसी गोल्डन गिफ्ट की अधिकारी आत्मायें हो। अधिकारी हैं ना! डबल विदेशी अधिकारी हैं? (हाथ हिलाते हैं) सभी राजा बनेंगे? तो इतने तख्त तैयार करने पड़ेंगे। बापदादा कहते हैं वह तख्त तो तख्त है, सर्व प्राप्ति हैं लेकिन इस संगमयुग का स्वराज्य उससे कम नहीं है। अभी भी राजा हो ना! प्रजा हो या रॉयल फैमिली हो? क्या हो? एक ही बाप है जो फलक से कहते हैं कि मेरा एक-एक बच्चा राजा बच्चा है। राजा हो ना! राजयोगी हो कि प्रजा योगी हो? इस समय सब दिलतख्तनशीन, स्वराज्य अधिकारी राजा बच्चे हैं, इतना रूहानी नशा रहता है ना? क्योंकि इस समय के स्वराज्य से ही भविष्य राज्य प्राप्त होता है। यह संगमयुग बहुत-बहुत-बहुत अमूल्य श्रेष्ठ है। संगमयुग को बापदादा और सभी बच्चे जानते हैं, खुशी-खुशी में संगमयुग को नाम क्या देते हैं? मौज़ों का युग। क्यों? यहाँ संगम जैसी मौज़ सारे कल्प में नहीं है। कारण? परमात्म मिलन की मौज़ सारे कल्प में अब मिलती है। संगमयुग का एक एक दिन क्या है? मौज़ ही मौज़ है। मौज़ है ना? मौज़ है, मूँझते तो नहीं हो ना! हर दिन उत्सव है क्योंकि उत्साह है। उमंग है, उत्साह है कि अपने सर्व भाई बहिनों को परमात्मा पिता का बनायें। सेवा का उमंग-उत्साह रहता है ना! यह करें, यह करें, यह करें... प्लैन बनाते हो ना! क्योंकि जो श्रेष्ठ प्राप्ति होती है तो दूसरे को सुनाने के बिना रह नहीं सकते हैं। इसी संगमयुग की प्राप्ति गोल्डन वर्ल्ड में भी होगी। अभी के पुरुषार्थ की प्रालब्ध भविष्य गोल्डन वर्ल्ड है। तो संगमयुग अच्छा लगता है या सतयुग अच्छा लगता है? क्या अच्छा लगता है? संगम अच्छा है ना? सिर्फ बीच-बीच में माया आती है। थोड़ा-थोड़ा कभी-कभी मूंझ जाते हैं। कई बच्चे सहज योग को मुश्किल योग बना देते हैं, है नहीं लेकिन बना देते हैं। वास्तव में है बहुत सहज, मुश्किल लगता है? जिसको मुश्किल लगता है वह हाथ उठाओ। सदा नहीं, कभी कभी मुश्किल है? या सहज है? जो मुश्किल योगी हैं वह हाथ उठाओ। मातायें मुश्किल योगी हो या सहज योगी? कोई मुश्किल योगी है? (कोई हाथ नहीं उठा रहा है) सारी सभा में हाथ कैसे उठायेंगे!

सभी बच्चे फलक से कहते हैं मेरा बाबा। मेरा बाबा है कि दादियों का बाबा है? मेरा बाबा है ना! हर एक कहेगा पहले मेरा। ऐसे है? यह सिन्धी लोग सभी बैठे हैं ना! मेरा बाबा है या दादी जानकी का है? दादी प्रकाशमणि का है? किसका है? मेरा है? सारा दिन क्या याद रहता है? मेरा ना! बाप कहते हैं बहुत सहज युक्ति है जितने बार मेरा-मेरा कहते हैं, सारे दिन में कितने बार मेरा शब्द कहते हो? अगर गिनती करो तो बहुत बार मेरा शब्द बोलते हो। जब मेरा शब्द बोलते हो तो बस मेरा कौन? मेरा बाबा। 

आप सभी को भी नव जीवन, नव युग और नये वर्ष की बहुत-बहुत पदम-पदम-पदम-पदमगुणा मुबारक और दिल की दुआयें हैं, यादप्यार और नमस्ते।

बापदादा ने सभी बच्चों को नये वर्ष की बधाई दी:-
चारों ओर के बहुत मीठे, बहुत प्यारे बच्चों को पदम-पदम गुणा न्यू ईयर की मुबारक हो। यह जो घड़ी बीत गई, यह है विदाई और बधाई की घड़ी। एक तरफ विदाई देनी है, जो अपने में सम्पन्न बनने में कमी अनुभव करते हो, उसको विदाई, सदा के लिए विदाई देना और आगे उड़ने के लिए बधाई। बधाई हो, बधाई हो, बधाई हो। अच्छा - ओम् शान्ति।

वरदान:-
स्मृति को अनुभव की स्थिति में स्थित करने वाले नम्बरवन विशेष आत्मा भव

सभी ब्राह्मण आत्माओं के अन्दर संकल्प रहता है कि हम विशेष आत्मा नम्बरवन बनें लेकिन संकल्प और कर्म के अन्तर को समाप्त करने के लिए स्मृति को अनुभव में लाना है। जैसे सुनना, जानना याद रहता है ऐसे स्वयं को उस अनुभव की स्थिति में लाना है इसके लिए स्वयं के और समय के महत्व को जान मन और बुद्धि को किसी भी अनुभव की सीट पर सेट कर लो तो नम्बरवन विशेष आत्मा बन जायेंगे।

स्लोगन:-
बुराई की रीस को छोड़ अच्छाई की रेस करो।

 
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