DATE: 10/12/24
10-12-2024 प्रात:मुरलीओम् शान्ति"बापदादा"' मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हारे यह रिकार्ड संजीवनी बूटी हैं, इन्हें बजाने से मुरझाइस निकल जायेगी'' प्रश्नः- अवस्था बिगड़ने का कारण क्या है? किस युक्ति से अवस्था बहुत अच्छी रह सकती है? उत्तर:- 1. ज्ञान की डांस नहीं करते, झरमुई झगमुई में अपना समय गँवा देते हैं इसलिए अवस्था बिगड़ जाती है। 2. दूसरों को दु:ख देते हैं तो भी उसका असर अवस्था पर आता है। अवस्था अच्छी तब रहेगी जब मीठा होकर चलेंगे। याद पर पूरा अटेन्शन होगा। रात को सोने के पहले कम से कम आधा घण्टा याद में बैठो फिर सवेरे उठकर याद करो तो अवस्था अच्छी रहेगी। गीत:- कौन आया मेरे मन के द्वारे......
ओम् शान्ति। यह रिकॉर्ड भी बाबा ने बनवाये हैं बच्चों के लिए। इनका अर्थ भी बच्चों के सिवाए कोई जान नहीं सकते। बाबा ने कई बार समझाया है कि ऐसे अच्छे-अच्छे रिकॉर्ड घर में रहने चाहिए फिर कोई मुरझाइस आती है तो रिकॉर्ड बजाने से बुद्धि में झट अर्थ आयेगा तो मुरझाइस निकल जायेगी। यह रिकॉर्ड भी संजीवनी बूटी है। बाबा डायरेक्शन तो देते हैं परन्तु कोई अमल में लाये। अब यह गीत में कौन कहते हैं कि हमारे तुम्हारे सबके दिल में कौन आया है! जो आकर ज्ञान डांस करते हैं। कहते हैं गोपिकायें कृष्ण को नाच नचाती थी, यह तो है नहीं। अब बाबा कहते हैं - हे सालिग्राम बच्चे। सबको कहते हैं ना। स्कूल माना स्कूल, जहाँ पढ़ाई होती है, यह भी स्कूल है। तुम बच्चे जानते हो हमारी दिल में किसकी याद आती है! और कोई भी मनुष्य मात्र की बुद्धि में यह बातें नहीं हैं। यह एक ही समय है जबकि तुम बच्चों को उनकी याद रहती है और कोई उनको याद नहीं करते। बाप कहते हैं तुम रोज़ मुझे याद करो तो धारणा बहुत अच्छी होगी। जैसे मैं डायरेक्शन देता हूँ वैसे तुम याद करते नहीं हो। माया तुमको याद करने नहीं देती है। मेरे कहने पर तुम बहुत कम चलते हो और माया के कहने पर बहुत चलते हो। कई बार कहा है - रात को जब सोते हो तो आधा घण्टा बाबा की याद में बैठ जाना चाहिए। भल स्त्री-पुरूष हैं, इकट्ठे बैठें वा अलग-अलग बैठें। बुद्धि में एक बाप की ही याद रहे। परन्तु कोई विरले ही याद करते हैं। माया भुला देती है। फरमान पर नहीं चलेंगे तो पद कैसे पा सकेंगे। बाबा को बहुत याद करना है। शिवबाबा आप ही आत्माओं के बाप हो। सबको आपसे ही वर्सा मिलना है। जो पुरूषार्थ नहीं करते हैं उनको भी वर्सा मिलेगा, ब्रह्माण्ड के मालिक तो सब बनेंगे। सब आत्मायें निर्वाणधाम में आयेंगी ड्रामा अनुसार। भल कुछ भी न करें। आधाकल्प भल भक्ति करते हैं परन्तु वापिस कोई जा नहीं सकते, जब तक मैं गाइड बनकर न आऊं। कोई ने रास्ता देखा ही नहीं है। अगर देखा हो तो उनके पिछाड़ी सब मच्छरों सदृश्य जाएं। मूलवतन क्या है - यह भी कोई जानते नहीं। तुम जानते हो यह बना-बनाया ड्रामा है, इनको ही रिपीट करना है। अब दिन में तो कर्मयोगी बन धन्धे में लगना है। खाना पकाना आदि सब कर्म करना है, वास्तव में कर्म संन्यास कहना भी रांग है। कर्म बिगर तो कोई रह न सके। कर्म संन्यासी झूठा नाम रख दिया है। तो दिन को भल धन्धा आदि करो, रात में और सवेरे-सवेरे बाप को अच्छी तरह से याद करो। जिसको अब अपनाया है, उसको याद करेंगे तो मदद भी मिलेगी। नहीं तो नहीं मिलेगी। साहूकारों को तो बाप का बनने में हृदय विदीर्ण होता है तो फिर पद भी नहीं मिलेगा। यह याद करना तो बहुत सहज है। वह हमारा बाप, टीचर, गुरू है। हमको सारा राज़ बतलाया है - यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है। बाप को याद करना है और फिर स्वदर्शन चक्र फिराना है। सबको वापिस ले जाने वाला तो बाप ही है। ऐसे-ऐसे ख्यालात में रहना चाहिए। रात को सोते समय भी यह नॉलेज घूमती रहे। सुबह को उठते भी यही नॉलेज याद रहे। हम ब्राह्मण सो देवता फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे। फिर बाबा आयेंगे फिर हम शूद्र से ब्राह्मण बनेंगे। बाबा त्रिमूर्ति, त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री भी है। हमारी बुद्धि खोल देते हैं। तीसरा नेत्र भी ज्ञान का मिलता है। ऐसा बाप तो कोई हो नहीं सकता। बाप रचना रचते हैं तो माता भी हो गई। जगत अम्बा को निमित्त बनाते हैं। बाप इस तन में आकर ब्रह्मा रूप से खेलते-कूदते भी हैं। घूमने भी जाते हैं। हम बाबा को याद तो करते हैं ना! तुम जानते हो इनके रथ में आते हैं। तुम कहेंगे बापदादा हमारे साथ खेलते हैं। खेल में भी बाबा पुरूषार्थ करता है याद करने का। बाबा कहते हैं मैं इनके द्वारा खेल रहा हूँ। चैतन्य तो है ना। तो ऐसे ख्याल रखना चाहिए। ऐसे बाप के ऊपर बलि भी चढ़ना है। भक्ति मार्ग में तुम गाते आये हो वारी जाऊं...... अब बाप कहते हैं हमको यह एक जन्म अपना वारिस बनाओ तो हम 21 जन्मों के लिए राज्य-भाग्य देंगे। अब यह फरमान देवे तो उस डायरेक्शन पर चलना है। वह भी जैसा देखेंगे ऐसा डायरेक्शन देंगे। डायरेक्शन पर चलने से ममत्व मिट जायेगा, परन्तु डरते हैं। बाबा कहते हैं तुम बलि नहीं चढ़ते हो तो हम वर्सा कैसे देंगे। तुम्हारे पैसे कोई ले थोड़ेही जाते हैं। कहेंगे, अच्छा तुम्हारे पैसे हैं, लिटरेचर में लगा दो। ट्रस्टी हैं ना। बाबा राय देते रहेंगे। बाबा का सब कुछ बच्चों के लिए है। बच्चों से कुछ लेते नहीं हैं। युक्ति से समझा देते हैं सिर्फ ममत्व मिट जाए। मोह भी बड़ा कड़ा है। (बन्दर का मिसाल) बाबा कहते हैं तुम बन्दर मिसल उनके पिछाड़ी मोह क्यों रखते हो। फिर घर-घर में मन्दिर कैसे बनेंगे। हम तुमको बन्दरपने से छुड़ाए मन्दिर लायक बनाते हैं। तुम इस किचड़पट्टी में ममत्व क्यों रखते हो। बाबा सिर्फ मत देंगे - कैसे सम्भालो। तो भी बुद्धि में नहीं बैठता। यह सारा बुद्धि का काम है।
बाबा राय देते हैं अमृतवेले भी कैसे बाबा से बातें करो। बाबा, आप बेहद के बाप, टीचर हो। आप ही बेहद के वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी बता सकते हो। लक्ष्मी-नारायण के 84 जन्मों की कहानी दुनिया में कोई नहीं जानते। जगत अम्बा को माता-माता भी कहते हैं। वह कौन है? सतयुग में तो हो नहीं सकती। वहाँ के महारानी-महाराजा तो लक्ष्मी-नारायण हैं। उनको अपना बच्चा है जो तख्त पर बैठेंगे। हम कैसे उनके बच्चे बनेंगे जो तख्त पर बैठेंगे। अभी हम जानते हैं यह जगदम्बा ब्राह्मणी है, ब्रह्मा की बेटी सरस्वती। मनुष्य थोड़ेही यह राज़ जानते हैं। रात को बाबा की याद में बैठने का नियम रखो तो बहुत अच्छा है। नियम बनायेंगे तो तुमको खुशी का पारा चढ़ा रहेगा फिर और कोई कष्ट नहीं होंगे। कहेंगे एक बाप के बच्चे हम भाई-बहन हैं। फिर गन्दी दृष्टि रखना क्रिमिनल एसाल्ट हो जायेगी। नशा भी सतो, रजो, तमोगुणी होता है ना। तमोगुणी नशा चढ़ा तो मर पड़ेंगे। यह तो नियम बना लो - थोड़ा भी समय बाबा को याद कर बाबा की सर्विस पर जाओ। फिर माया के तूफान नहीं आयेंगे। वह नशा दिन भर चलेगा और अवस्था भी बड़ी रिफाइन हो जायेगी। योग में भी लाइन क्लीयर हो जायेगी। ऐसे-ऐसे रिकार्ड भी बहुत अच्छे हैं, रिकार्ड सुनते रहेंगे तो नाचना शुरू कर देंगे, रिफ्रेश हो जायेंगे। दो, चार, पांच रिकॉर्ड बड़े अच्छे हैं। गरीब भी बाबा की इस सर्विस में लग जाएं तो उनको महल मिल सकते हैं। शिवबाबा के भण्डारे से सब कुछ मिल सकता है। सर्विसएबुल को बाबा क्यों नहीं देंगे। शिवबाबा का भण्डारा भरपूर ही है।
(गीत) यह है ज्ञान डांस। बाप आकर ज्ञान डांस कराते हैं गोप-गोपियों को। कहाँ भी बैठे हो बाबा को याद करते रहो तो अवस्था बहुत अच्छी रहेगी। जैसे बाबा ज्ञान और योग के नशे में रहते हैं तुम बच्चों को भी सिखलाते हैं। तो खुशी का नशा रहेगा। नहीं तो झरमुई-झगमुई में रहने से फिर अवस्था ही बिगड़ जाती है। सुबह को उठना तो बहुत अच्छा है। बाबा की याद में बैठ बाबा से मीठी-मीठी बातें करनी चाहिए। भाषण करने वालों को तो विचार सागर मंथन करना पड़े। आज इन प्वाइंट्स पर समझायेंगे, ऐसे समझायेंगे। बाबा को बहुत बच्चे कहते हैं हम नौकरी छोड़ें? परन्तु बाबा कहते हैं पहले सर्विस का सबूत तो दो। बाबा ने याद की युक्ति बहुत अच्छी बताई है। परन्तु कोटों में कोई निकलेंगे जिनको यह आदत पड़ेगी। कोई को मुश्किल याद रहती है। तुम कुमारियों का नाम तो मशहूर है। कुमारी को सब पांव पड़ते हैं। तुम 21 जन्मों के लिए भारत को स्वराज्य दिलाते हो। तुम्हारा यादगार मन्दिर भी है। ब्रह्माकुमार-कुमारियों का नाम भी मशहूर हो गया है ना। कुमारी वह जो 21 कुल का उद्धार करे। तो उनका अर्थ भी समझना पड़े। तुम बच्चे जानते हो यह 5 हज़ार वर्ष का रील है, जो कुछ पास हुआ है वह ड्रामा। भूल हुई ड्रामा। फिर आगे के लिए अपना रजिस्टर ठीक कर देना चाहिए। फिर रजिस्टर खराब नहीं होना चाहिए। बहुत बड़ी मेहनत है तब इतना ऊंच पद मिलेगा। बाबा का बन गया तो फिर बाबा वर्सा भी देंगे। सौतेले को थोड़ेही वर्सा देंगे। मदद देना तो फ़र्ज है। सेन्सीबुल जो हैं वह हर बात में मदद करते हैं। बाप देखो कितनी मदद करते हैं। हिम्मते मर्दा मददे खुदा। माया पर जीत पाने में भी ताकत चाहिए। एक रूहानी बाप को याद करना है, और संग तोड़ एक संग जोड़ना है। बाबा है ज्ञान का सागर। वह कहते हैं मैं इनमें प्रवेश करता हूँ, बोलता हूँ। और तो कोई ऐसे कह न सके कि मैं बाप, टीचर, गुरू हूँ। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को रचने वाला हूँ। इन बातों को अभी तुम बच्चे ही समझ सकते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पुरानी किचड़पट्टी में ममत्व नहीं रखना है, बाप के डायरेक्शन पर चलकर अपना ममत्व मिटाना है। ट्रस्टी बनकर रहना है।
2) इस अन्तिम जन्म में भगवान को अपना वारिस बनाकर उन पर बलि चढ़ना है, तब 21 जन्मों का राज्य भाग्य मिलेगा। बाप को याद कर सर्विस करनी है, नशे में रहना है, रजिस्टर कभी खराब न हो यह ध्यान देना है।
वरदान:- प्रत्यक्षफल द्वारा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करने वाले नि:स्वार्थ सेवाधारी भव
सतयुग में संगम के कर्म का फल मिलेगा लेकिन यहाँ बाप का बनने से प्रत्यक्ष फल वर्से के रूप में मिलता है। सेवा की और सेवा करने के साथ-साथ खुशी मिली। जो याद में रहकर, नि:स्वार्थ भाव से सेवा करते हैं उन्हें सेवा का प्रत्यक्ष फल अवश्य मिलता है। प्रत्यक्षफल ही ताजा फल है जो एवरहेल्दी बना देता है। योगयुक्त, यथार्थ सेवा का फल है खुशी, अतीन्द्रिय सुख और डबल लाइट की अनुभूति। स्लोगन:- विशेष आत्मा वह है जो अपनी चलन द्वारा रूहानी रायॅल्टी की झलक और फलक का अनुभव कराये।
10-12-2024 | प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"' | मधुबन |
“मीठे बच्चे - तुम्हारे यह रिकार्ड संजीवनी बूटी हैं, इन्हें बजाने से मुरझाइस निकल जायेगी'' | |
प्रश्नः- | अवस्था बिगड़ने का कारण क्या है? किस युक्ति से अवस्था बहुत अच्छी रह सकती है? |
उत्तर:- | 1. ज्ञान की डांस नहीं करते, झरमुई झगमुई में अपना समय गँवा देते हैं इसलिए अवस्था बिगड़ जाती है। 2. दूसरों को दु:ख देते हैं तो भी उसका असर अवस्था पर आता है। अवस्था अच्छी तब रहेगी जब मीठा होकर चलेंगे। याद पर पूरा अटेन्शन होगा। रात को सोने के पहले कम से कम आधा घण्टा याद में बैठो फिर सवेरे उठकर याद करो तो अवस्था अच्छी रहेगी। |
गीत:- | कौन आया मेरे मन के द्वारे...... |
ओम् शान्ति। यह रिकॉर्ड भी बाबा ने बनवाये हैं बच्चों के लिए। इनका अर्थ भी बच्चों के सिवाए कोई जान नहीं सकते। बाबा ने कई बार समझाया है कि ऐसे अच्छे-अच्छे रिकॉर्ड घर में रहने चाहिए फिर कोई मुरझाइस आती है तो रिकॉर्ड बजाने से बुद्धि में झट अर्थ आयेगा तो मुरझाइस निकल जायेगी। यह रिकॉर्ड भी संजीवनी बूटी है। बाबा डायरेक्शन तो देते हैं परन्तु कोई अमल में लाये। अब यह गीत में कौन कहते हैं कि हमारे तुम्हारे सबके दिल में कौन आया है! जो आकर ज्ञान डांस करते हैं। कहते हैं गोपिकायें कृष्ण को नाच नचाती थी, यह तो है नहीं। अब बाबा कहते हैं - हे सालिग्राम बच्चे। सबको कहते हैं ना। स्कूल माना स्कूल, जहाँ पढ़ाई होती है, यह भी स्कूल है। तुम बच्चे जानते हो हमारी दिल में किसकी याद आती है! और कोई भी मनुष्य मात्र की बुद्धि में यह बातें नहीं हैं। यह एक ही समय है जबकि तुम बच्चों को उनकी याद रहती है और कोई उनको याद नहीं करते। बाप कहते हैं तुम रोज़ मुझे याद करो तो धारणा बहुत अच्छी होगी। जैसे मैं डायरेक्शन देता हूँ वैसे तुम याद करते नहीं हो। माया तुमको याद करने नहीं देती है। मेरे कहने पर तुम बहुत कम चलते हो और माया के कहने पर बहुत चलते हो। कई बार कहा है - रात को जब सोते हो तो आधा घण्टा बाबा की याद में बैठ जाना चाहिए। भल स्त्री-पुरूष हैं, इकट्ठे बैठें वा अलग-अलग बैठें। बुद्धि में एक बाप की ही याद रहे। परन्तु कोई विरले ही याद करते हैं। माया भुला देती है। फरमान पर नहीं चलेंगे तो पद कैसे पा सकेंगे। बाबा को बहुत याद करना है। शिवबाबा आप ही आत्माओं के बाप हो। सबको आपसे ही वर्सा मिलना है। जो पुरूषार्थ नहीं करते हैं उनको भी वर्सा मिलेगा, ब्रह्माण्ड के मालिक तो सब बनेंगे। सब आत्मायें निर्वाणधाम में आयेंगी ड्रामा अनुसार। भल कुछ भी न करें। आधाकल्प भल भक्ति करते हैं परन्तु वापिस कोई जा नहीं सकते, जब तक मैं गाइड बनकर न आऊं। कोई ने रास्ता देखा ही नहीं है। अगर देखा हो तो उनके पिछाड़ी सब मच्छरों सदृश्य जाएं। मूलवतन क्या है - यह भी कोई जानते नहीं। तुम जानते हो यह बना-बनाया ड्रामा है, इनको ही रिपीट करना है। अब दिन में तो कर्मयोगी बन धन्धे में लगना है। खाना पकाना आदि सब कर्म करना है, वास्तव में कर्म संन्यास कहना भी रांग है। कर्म बिगर तो कोई रह न सके। कर्म संन्यासी झूठा नाम रख दिया है। तो दिन को भल धन्धा आदि करो, रात में और सवेरे-सवेरे बाप को अच्छी तरह से याद करो। जिसको अब अपनाया है, उसको याद करेंगे तो मदद भी मिलेगी। नहीं तो नहीं मिलेगी। साहूकारों को तो बाप का बनने में हृदय विदीर्ण होता है तो फिर पद भी नहीं मिलेगा। यह याद करना तो बहुत सहज है। वह हमारा बाप, टीचर, गुरू है। हमको सारा राज़ बतलाया है - यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है। बाप को याद करना है और फिर स्वदर्शन चक्र फिराना है। सबको वापिस ले जाने वाला तो बाप ही है। ऐसे-ऐसे ख्यालात में रहना चाहिए। रात को सोते समय भी यह नॉलेज घूमती रहे। सुबह को उठते भी यही नॉलेज याद रहे। हम ब्राह्मण सो देवता फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे। फिर बाबा आयेंगे फिर हम शूद्र से ब्राह्मण बनेंगे। बाबा त्रिमूर्ति, त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री भी है। हमारी बुद्धि खोल देते हैं। तीसरा नेत्र भी ज्ञान का मिलता है। ऐसा बाप तो कोई हो नहीं सकता। बाप रचना रचते हैं तो माता भी हो गई। जगत अम्बा को निमित्त बनाते हैं। बाप इस तन में आकर ब्रह्मा रूप से खेलते-कूदते भी हैं। घूमने भी जाते हैं। हम बाबा को याद तो करते हैं ना! तुम जानते हो इनके रथ में आते हैं। तुम कहेंगे बापदादा हमारे साथ खेलते हैं। खेल में भी बाबा पुरूषार्थ करता है याद करने का। बाबा कहते हैं मैं इनके द्वारा खेल रहा हूँ। चैतन्य तो है ना। तो ऐसे ख्याल रखना चाहिए। ऐसे बाप के ऊपर बलि भी चढ़ना है। भक्ति मार्ग में तुम गाते आये हो वारी जाऊं...... अब बाप कहते हैं हमको यह एक जन्म अपना वारिस बनाओ तो हम 21 जन्मों के लिए राज्य-भाग्य देंगे। अब यह फरमान देवे तो उस डायरेक्शन पर चलना है। वह भी जैसा देखेंगे ऐसा डायरेक्शन देंगे। डायरेक्शन पर चलने से ममत्व मिट जायेगा, परन्तु डरते हैं। बाबा कहते हैं तुम बलि नहीं चढ़ते हो तो हम वर्सा कैसे देंगे। तुम्हारे पैसे कोई ले थोड़ेही जाते हैं। कहेंगे, अच्छा तुम्हारे पैसे हैं, लिटरेचर में लगा दो। ट्रस्टी हैं ना। बाबा राय देते रहेंगे। बाबा का सब कुछ बच्चों के लिए है। बच्चों से कुछ लेते नहीं हैं। युक्ति से समझा देते हैं सिर्फ ममत्व मिट जाए। मोह भी बड़ा कड़ा है। (बन्दर का मिसाल) बाबा कहते हैं तुम बन्दर मिसल उनके पिछाड़ी मोह क्यों रखते हो। फिर घर-घर में मन्दिर कैसे बनेंगे। हम तुमको बन्दरपने से छुड़ाए मन्दिर लायक बनाते हैं। तुम इस किचड़पट्टी में ममत्व क्यों रखते हो। बाबा सिर्फ मत देंगे - कैसे सम्भालो। तो भी बुद्धि में नहीं बैठता। यह सारा बुद्धि का काम है।
बाबा राय देते हैं अमृतवेले भी कैसे बाबा से बातें करो। बाबा, आप बेहद के बाप, टीचर हो। आप ही बेहद के वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी बता सकते हो। लक्ष्मी-नारायण के 84 जन्मों की कहानी दुनिया में कोई नहीं जानते। जगत अम्बा को माता-माता भी कहते हैं। वह कौन है? सतयुग में तो हो नहीं सकती। वहाँ के महारानी-महाराजा तो लक्ष्मी-नारायण हैं। उनको अपना बच्चा है जो तख्त पर बैठेंगे। हम कैसे उनके बच्चे बनेंगे जो तख्त पर बैठेंगे। अभी हम जानते हैं यह जगदम्बा ब्राह्मणी है, ब्रह्मा की बेटी सरस्वती। मनुष्य थोड़ेही यह राज़ जानते हैं। रात को बाबा की याद में बैठने का नियम रखो तो बहुत अच्छा है। नियम बनायेंगे तो तुमको खुशी का पारा चढ़ा रहेगा फिर और कोई कष्ट नहीं होंगे। कहेंगे एक बाप के बच्चे हम भाई-बहन हैं। फिर गन्दी दृष्टि रखना क्रिमिनल एसाल्ट हो जायेगी। नशा भी सतो, रजो, तमोगुणी होता है ना। तमोगुणी नशा चढ़ा तो मर पड़ेंगे। यह तो नियम बना लो - थोड़ा भी समय बाबा को याद कर बाबा की सर्विस पर जाओ। फिर माया के तूफान नहीं आयेंगे। वह नशा दिन भर चलेगा और अवस्था भी बड़ी रिफाइन हो जायेगी। योग में भी लाइन क्लीयर हो जायेगी। ऐसे-ऐसे रिकार्ड भी बहुत अच्छे हैं, रिकार्ड सुनते रहेंगे तो नाचना शुरू कर देंगे, रिफ्रेश हो जायेंगे। दो, चार, पांच रिकॉर्ड बड़े अच्छे हैं। गरीब भी बाबा की इस सर्विस में लग जाएं तो उनको महल मिल सकते हैं। शिवबाबा के भण्डारे से सब कुछ मिल सकता है। सर्विसएबुल को बाबा क्यों नहीं देंगे। शिवबाबा का भण्डारा भरपूर ही है।
(गीत) यह है ज्ञान डांस। बाप आकर ज्ञान डांस कराते हैं गोप-गोपियों को। कहाँ भी बैठे हो बाबा को याद करते रहो तो अवस्था बहुत अच्छी रहेगी। जैसे बाबा ज्ञान और योग के नशे में रहते हैं तुम बच्चों को भी सिखलाते हैं। तो खुशी का नशा रहेगा। नहीं तो झरमुई-झगमुई में रहने से फिर अवस्था ही बिगड़ जाती है। सुबह को उठना तो बहुत अच्छा है। बाबा की याद में बैठ बाबा से मीठी-मीठी बातें करनी चाहिए। भाषण करने वालों को तो विचार सागर मंथन करना पड़े। आज इन प्वाइंट्स पर समझायेंगे, ऐसे समझायेंगे। बाबा को बहुत बच्चे कहते हैं हम नौकरी छोड़ें? परन्तु बाबा कहते हैं पहले सर्विस का सबूत तो दो। बाबा ने याद की युक्ति बहुत अच्छी बताई है। परन्तु कोटों में कोई निकलेंगे जिनको यह आदत पड़ेगी। कोई को मुश्किल याद रहती है। तुम कुमारियों का नाम तो मशहूर है। कुमारी को सब पांव पड़ते हैं। तुम 21 जन्मों के लिए भारत को स्वराज्य दिलाते हो। तुम्हारा यादगार मन्दिर भी है। ब्रह्माकुमार-कुमारियों का नाम भी मशहूर हो गया है ना। कुमारी वह जो 21 कुल का उद्धार करे। तो उनका अर्थ भी समझना पड़े। तुम बच्चे जानते हो यह 5 हज़ार वर्ष का रील है, जो कुछ पास हुआ है वह ड्रामा। भूल हुई ड्रामा। फिर आगे के लिए अपना रजिस्टर ठीक कर देना चाहिए। फिर रजिस्टर खराब नहीं होना चाहिए। बहुत बड़ी मेहनत है तब इतना ऊंच पद मिलेगा। बाबा का बन गया तो फिर बाबा वर्सा भी देंगे। सौतेले को थोड़ेही वर्सा देंगे। मदद देना तो फ़र्ज है। सेन्सीबुल जो हैं वह हर बात में मदद करते हैं। बाप देखो कितनी मदद करते हैं। हिम्मते मर्दा मददे खुदा। माया पर जीत पाने में भी ताकत चाहिए। एक रूहानी बाप को याद करना है, और संग तोड़ एक संग जोड़ना है। बाबा है ज्ञान का सागर। वह कहते हैं मैं इनमें प्रवेश करता हूँ, बोलता हूँ। और तो कोई ऐसे कह न सके कि मैं बाप, टीचर, गुरू हूँ। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को रचने वाला हूँ। इन बातों को अभी तुम बच्चे ही समझ सकते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पुरानी किचड़पट्टी में ममत्व नहीं रखना है, बाप के डायरेक्शन पर चलकर अपना ममत्व मिटाना है। ट्रस्टी बनकर रहना है।
2) इस अन्तिम जन्म में भगवान को अपना वारिस बनाकर उन पर बलि चढ़ना है, तब 21 जन्मों का राज्य भाग्य मिलेगा। बाप को याद कर सर्विस करनी है, नशे में रहना है, रजिस्टर कभी खराब न हो यह ध्यान देना है।
वरदान:- | प्रत्यक्षफल द्वारा अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करने वाले नि:स्वार्थ सेवाधारी भव सतयुग में संगम के कर्म का फल मिलेगा लेकिन यहाँ बाप का बनने से प्रत्यक्ष फल वर्से के रूप में मिलता है। सेवा की और सेवा करने के साथ-साथ खुशी मिली। जो याद में रहकर, नि:स्वार्थ भाव से सेवा करते हैं उन्हें सेवा का प्रत्यक्ष फल अवश्य मिलता है। प्रत्यक्षफल ही ताजा फल है जो एवरहेल्दी बना देता है। योगयुक्त, यथार्थ सेवा का फल है खुशी, अतीन्द्रिय सुख और डबल लाइट की अनुभूति। |
स्लोगन:- | विशेष आत्मा वह है जो अपनी चलन द्वारा रूहानी रायॅल्टी की झलक और फलक का अनुभव कराये। |
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“मीठे बच्चे - विनाश के पहले सबको बाप का परिचय देना है, धारणा कर दूसरों को समझाओ तब ऊंच पद मिल सकेगा'' प्रश्नः- राजयोगी स्टूडेन्ट्स को बाप का डायरेक्शन क्या है? उत्तर:- तुम्हें डायरेक्शन है कि एक बाप का बनकर फिर औरों से दिल नहीं लगानी है। प्रतिज्ञा कर फिर पतित नहीं बनना है। तुम ऐसा सम्पूर्ण पावन बन जाओ जो बाप और टीचर की याद स्वत: निरन्तर बनी रहे। एक बाप से ही प्यार करो, उसे ही याद करो तो तुम्हें बहुत ताकत मिलती रहेगी।
ओम् शान्ति। रूहानी बाप बैठ समझाते हैं। समझाते तब हैं जबकि यह शरीर है। सम्मुख ही समझाना होता है। जो सम्मुख समझाया जाता है वह फिर लिखत के द्वारा सबके पास जाता है। तुम यहाँ आते हो सम्मुख सुनने के लिए। बेहद का बाप आत्माओं को सुनाते हैं। आत्मा ही सुनती है। सब कुछ आत्मा ही करती है - इस शरीर द्वारा इसलिए पहले-पहले अपने को आत्मा जरूर समझना है। गायन है आत्मायें-परमात्मा अलग रहे बहुकाल......। सबसे पहले-पहले बाप से कौन बिछुड़कर आते हैं यहाँ पार्ट बजाने? तुमसे पूछेंगे कितना समय तुम बाप से अलग रहे हो? तो तुम कहेंगे 5 हज़ार वर्ष। पूरा हिसाब है ना। यह तो तुम बच्चों को पता है कैसे नम्बरवार आते हैं। बाप जो ऊपर में थे वह भी अभी नीचे आ गये हैं - तुम सबकी बैटरी चार्ज करने। अभी बाप को याद करना है। अभी तो बाप सम्मुख है ना। भक्ति मार्ग में तो बाप के आक्यूपेशन का पता ही नहीं है। नाम, रूप, देश, काल को जानते ही नहीं। तुमको तो नाम, रूप, देश, काल का सब पता है। तुम जानते हो इस रथ द्वारा बाप हमको सब राज़ समझाते हैं। रचता और रचना के आदि, मध्य, अन्त का राज़ समझाया है। यह कितना सूक्ष्म है। इस मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ का बीजरूप बाप ही है। वह यहाँ आते जरूर हैं। नई दुनिया स्थापन करना उनका ही काम है। ऐसे नहीं कि वहाँ बैठे स्थापना करते हैं। तुम बच्चे जानते हो बाबा इस तन द्वारा हमको सम्मुख समझा रहे हैं। यह भी बाप का प्यार करना हुआ ना। और कोई को भी उनकी बायोग्राफी का पता नहीं है। गीता है आदि सनातन देवी-देवता धर्म का शास्त्र। यह भी तुम जानते हो - इस ज्ञान के बाद है विनाश। विनाश जरूर होना है। और जो भी धर्म स्थापक आते हैं, उनके आने पर विनाश नहीं होता है। विनाश का टाइम ही यह है, इसलिए तुमको जो ज्ञान मिलता है वह फिर खलास हो जाता है। तुम बच्चों की बुद्धि में यह सब बातें हैं। तुम रचता और रचना को जान गये हो। हैं दोनों अनादि जो चलते आते हैं। बाप का पार्ट ही है संगम पर आने का। भक्ति आधाकल्प चलती है, ज्ञान नहीं चलता है। ज्ञान का वर्सा आधाकल्प के लिए मिलता है। ज्ञान तो एक ही बार सिर्फ संगम पर मिलता है। यह क्लास तुम्हारा एक ही बार चलता है। यह बातें अच्छी रीति समझ कर फिर औरों को समझाना भी है। पद का सारा मदार है सर्विस करने पर। तुम जानते हो पुरूषार्थ कर अब नई दुनिया में जाना है। धारणा कर और दूसरों को समझाना - इस पर ही तुम्हारा पद है। विनाश होने के पहले सबको बाप का परिचय देना है और रचना के आदि, मध्य, अन्त का परिचय देना है। तुम भी बाप को याद करते हो कि जन्म-जन्मान्तर के पाप कट जाएं। जब तक बाप पढ़ाते रहते हैं, याद जरूर करना है। पढ़ाने वाले के साथ योग तो रहेगा ना। टीचर पढ़ाते हैं तो उनके साथ योग रहता है। योग बिगर पढ़ेंगे कैसे? योग अर्थात् पढ़ाने वाले की याद। यह बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है। तीनों रूप में पूरा याद करना पड़ता है। यह सतगुरू तुम्हें एक ही बार मिलता है। ज्ञान से सद्गति मिली, बस फिर गुरू की रस्म ही खत्म। बाप, टीचर की रस्म चलती है, गुरू की रस्म खत्म हो जाती है। सद्गति मिल गई ना। निर्वाणधाम में तुम प्रैक्टिकल में जाते हो फिर अपने समय पर पार्ट बजाने आयेंगे। मुक्ति-जीवनमुक्ति दोनों तुमको मिल जाती हैं। मुक्ति भी जरूर मिलती है। थोड़े समय के लिए घर जाकर रहेंगे। यहाँ तो शरीर से पार्ट बजाना पड़ता है। पिछाड़ी में सब पार्टधारी आ जायेंगे। नाटक जब पूरा होता है तो सब एक्टर्स स्टेज पर आ जाते हैं। अभी भी सब एक्टर्स स्टेज पर आकर इकट्ठे हुए हैं। कितना घोर घमसान है। सतयुग आदि में इतना घोर घमसान नहीं था। अभी तो कितनी अशान्ति है। तो अब जैसे बाप को सृष्टि चक्र की नॉलेज है तो बच्चों को भी नॉलेज है। बीज को नॉलेज है ना - हमारा झाड़ कैसे वृद्धि को पाकर फिर खत्म होता है। अभी तुम बैठे हो नई दुनिया की सैपलिंग लगाने अथवा आदि सनातन देवी-देवता धर्म का सैपलिंग लगाने। तुमको पता है इन लक्ष्मी-नारायण ने राज्य कैसे पाया? तुम जानते हो हम अभी नई दुनिया का प्रिन्स बनेंगे। उस दुनिया में रहने वाले सब अपने को मालिक ही कहेंगे ना। जैसे अभी भी सब कहते हैं भारत हमारा देश है। तुम समझते हो अभी हम संगम पर खड़े हैं, शिवालय में जाने वाले हैं। बस, अभी गये कि गये। हम जाकर शिवालय के मालिक बनेंगे। तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही यह है। यथा राजा रानी तथा प्रजा, सब शिवालय के मालिक बन जाते हैं। बाकी राजधानी में भिन्न-भिन्न स्टेट्स तो होते ही हैं। वहाँ वजीर तो कोई होता ही नहीं। वजीर तब होते हैं जब पतित बनते हैं। लक्ष्मी-नारायण वा राम-सीता का वजीर नहीं सुना होगा क्योंकि वह खुद सतोप्रधान पावन बुद्धि वाले हैं। फिर जब पतित बनते हैं तब राजा-रानी एक वजीर रखते हैं राय लेने के लिए। अभी तो देखो अनेकानेक वजीर हैं।
तुम बच्चे जानते हो यह बहुत मजे का खेल है। खेल हमेशा मजे का ही होता है। सुख भी होता है, दु:ख भी होता है। इस बेहद के खेल को तुम बच्चे ही जानते हो। इसमें रोने-पीटने आदि की बात ही नहीं। गाते भी हैं बीती सो बीती देखो..... बनी-बनाई बन रही। यह नाटक तुम्हारी बुद्धि में है। हम इनके एक्टर्स हैं। हमारे 84 जन्मों का पार्ट एक्यूरेट अविनाशी है। जो जिस जन्म में जो एक्ट करते आये हैं वही करते रहेंगे। आज से 5 हज़ार वर्ष पहले भी तुमको यही कहा था कि अपने को आत्मा समझो। गीता में भी अक्षर हैं। तुम जानते हो बरोबर आदि सनातन देवी-देवता धर्म जब स्थापन हुआ था तो बाप ने कहा था देह के सब धर्म छोड़ अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो। मन्मनाभव का अर्थ तो बाप ने अच्छी रीति समझाया है। भाषा भी यही है। यहाँ देखो कितनी ढेर भाषायें हैं। भाषाओं पर भी कितना हंगामा है। भाषा बिगर तो काम चल न सके। ऐसी-ऐसी भाषायें सीखकर आते हैं जो मदर लैंगवेज खलास हो जाती है। जो जास्ती भाषायें सीखते हैं उनको इनाम मिलता है। जितने धर्म, उतनी भाषायें होंगी। वहाँ तो तुम जानते हो अपनी ही राजाई होगी। भाषा भी एक होगी। यहाँ तो 100 माइल पर एक भाषा है। वहाँ तो एक ही भाषा होती है। यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं तो उस बाप को ही याद करते रहो। शिवबाबा समझाते हैं ब्रह्मा द्वारा। रथ तो जरूर चाहिए ना। शिवबाबा हमारा बाप है। बाबा कहते हैं मेरे तो बेहद के बच्चे हैं। बाबा इन द्वारा पढ़ाते हैं ना। टीचर को कभी गले से थोड़ेही लगाते हैं। बाप तो तुमको पढ़ाने आये हैं। राजयोग सिखलाते हैं तो टीचर ठहरा ना। तुम स्टूडेन्ट हो। स्टूडेन्ट कभी टीचर को भाकी पहनते हैं क्या? एक बाप का बनकर फिर औरों से दिल नहीं लगानी है।
बाप कहते हैं मैं तुमको राजयोग सिखलाने आया हूँ ना। तुम शरीरधारी, हम अशरीरी ऊपर में रहने वाले। कहते हो - बाबा, पावन बनाने आओ तो गोया तुम पतित हो ना? फिर मेरे को भाकी कैसे पहन सकते? प्रतिज्ञा कर फिर पतित बन जाते हैं। जब एकदम पावन बन जायेंगे, पिछाड़ी में फिर याद में भी रहेंगे, टीचर को, गुरू को याद करते रहेंगे। अभी तो छी-छी बन गिर पड़ते हैं, और ही सौ गुणा दण्ड पड़ जाता है। यह तो बीच में दलाल के रूप में मिला है, उनको याद करना है। बाबा कहते हैं मैं भी उनका मुरब्बी बच्चा हूँ। फिर मैं कहाँ भाकी पहन सकता हूँ! तुम फिर भी इस शरीर द्वारा मिलते हो। मैं उनको कैसे भाकी पहनूँ? बाप तो कहते हैं - बच्चे, तुम एक बाप को ही याद करो, प्यार करो। याद से पॉवर बहुत मिलती है। बाप सर्वशक्तिमान् है। बाप से ही तुमको इतनी पॉवर मिलती है। तुम कितने बलवान बनते हो। तुम्हारी राजधानी पर कोई जीत पहन न सके। रावण राज्य ही खत्म हो जाता है। दु:ख देने वाला कोई रहता ही नहीं। उनको सुखधाम कहा जाता है। रावण सारे विश्व में सबको दु:ख देने वाला है। जानवर भी दु:खी होते हैं। वहाँ तो जानवर भी आपस में प्रेम से रहते हैं। यहाँ तो प्रेम है नहीं।
तुम बच्चे जानते हो यह ड्रामा कैसे फिरता है। इसके आदि-मध्य-अन्त का राज़ बाप ही समझाते हैं। कोई अच्छी रीति पढ़ते हैं, कोई कम पढ़ते हैं। पढ़ते तो सब हैं ना। सारी दुनिया भी पढ़ेगी अर्थात् बाप को याद करेगी। बाप को याद करना - यह भी पढ़ाई है ना। उस बाप को सब याद करते हैं, वह सर्व का सद्गति दाता, सबको सुख देने वाला है। कहते भी हैं आकर पावन बनाओ तो जरूर पतित ठहरे। वह तो आते ही हैं विकारियों को निर्विकारी बनाने। पुकारते भी हैं कि हे अल्लाह, आकर हमको पावन बनाओ। उनका यही धंधा है, इसलिए बुलाते हैं।
तुम्हारी भाषा भी करेक्ट होनी चाहिए। वो लोग कहते हैं अल्लाह, वह कहते हैं गॉड। गॉड फादर भी कहते हैं। पिछाड़ी वालों की बुद्धि फिर भी अच्छी रहती है। इतना दु:ख नहीं उठाते। तो अब तुम सम्मुख बैठे हो, क्या करते हो? बाबा को इस भृकुटी में देखते हो। बाबा फिर तुम्हारी भृकुटी में देखते हैं। जिसमें मैं प्रवेश करता हूँ, उनको देख सकता हूँ? वह तो बाजू में बैठा है, यह बड़ी समझने की बात है। मैं इनके बाजू में बैठा हुआ हूँ। यह भी समझता है, हमारे बाजू में बैठा है। तुम कहेंगे हम सामने दो को देखते हैं। बाप और दादा दोनों आत्मा को देखते हो। तुम्हारे में ज्ञान है - बापदादा किसको कहते हैं? आत्मा सामने बैठी है। भक्ति मार्ग में तो आंखें बन्द कर बैठ सुनते हैं। पढ़ाई कोई ऐसे थोड़ेही होती है। टीचर को तो देखना पड़े ना। यह तो बाप भी है, टीचर भी है तो सामने देखना होता है। सामने बैठे और आंखे बन्द हों, झुटका खाते रहें, ऐसी पढ़ाई तो होती नहीं। स्टूडेन्ट टीचर को जरूर देखता रहेगा। नहीं तो टीचर कहेंगे यह तो झुटका खाते रहते हैं। यह कोई भांग पीकर आये हैं। तुम्हारी बुद्धि में है बाबा इस तन में है। मैं बाबा को देखता हूँ। बाप समझाते हैं यह क्लास कॉमन नहीं है - जो कोई आंखे बन्दकर बैठे। स्कूल में कभी कोई आंखे बन्द करके बैठते हैं क्या? और सतसंगों को स्कूल नहीं कहा जाता है। भल गीता बैठ सुनाते हैं परन्तु उसको स्कूल नहीं कहा जाता। वह कोई बाप थोड़ेही है जिसको देखें। कोई-कोई शिव के भक्त होते हैं तो शिव को ही याद करते हैं, कान से कथा सुनते रहते। शिव की भक्ति करने वालों को शिव को ही याद करना पड़े। कोई भी सतसंग में प्रश्न-उत्तर आदि नहीं होता है। यहाँ होता है। यहाँ तुम्हारी आमदनी बहुत है। आमदनी में कभी उबासी नहीं आ सकती। धन मिलता है ना तो खुशी होती है। उबासी, ग़म की निशानी है। बीमार होगा वा देवाला निकला होगा तो उबासी आती रहेगी। पैसा मिलता रहेगा तो कभी उबासी नहीं आयेगी। बाबा व्यापारी भी है। रात को स्टीमर आते थे तो रात को जागना पड़ता था। कोई-कोई बेग़म रात को आती हैं तो सिर्फ फीमेल के लिए ही खुला रहता है। बाबा भी कहते हैं प्रदर्शनी आदि में फीमेल्स के लिए खास दिन रखो तो बहुत आयेंगी। पर्देनशीन भी आयेंगी। बहुएं पर्देनशीन रहती हैं। मोटर में भी पर्दा रहता है। यहाँ तो आत्मा की बात है। ज्ञान मिल गया तो पर्दा भी खुल जायेगा। सतयुग में पर्दा आदि होता नहीं। यह तो प्रवृत्ति मार्ग का ज्ञान है ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) यह खेल बड़ा मज़े का बना हुआ है, इसमें सुख और दु:ख का पार्ट नूँधा हुआ है इसलिए रोने पीटने की बात नहीं। बुद्धि में रहे बनी-बनाई बन रही, बीती का चिंतन नहीं करना है।
2) यह कॉमन क्लास नहीं है, इसमें आंखे बन्द करके नहीं बैठना है। टीचर को सामने देखना है। उबासी आदि नहीं लेनी है। उबासी गम (दु:ख) की निशानी है।
वरदान:- सन्तुष्टता के तीन सर्टीफिकेट ले अपने योगी जीवन का प्रभाव डालने वाले सहजयोगी भव
सन्तुष्टता योगी जीवन का विशेष लक्ष्य है, जो सदा सन्तुष्ट रहते और सर्व को सन्तुष्ट करते हैं उनके योगी जीवन का प्रभाव दूसरों पर स्वत: पड़ता है। जैसे साइन्स के साधनों का वायुमण्डल पर प्रभाव पड़ता है, ऐसे सहजयोगी जीवन का भी प्रभाव होता है। योगी जीवन के तीन सर्टीफिकेट हैं एक - स्व से सन्तुष्ट, दूसरा - बाप सन्तुष्ट और तीसरा - लौकिक अलौकिक परिवार सन्तुष्ट। स्लोगन:- स्वराज्य का तिलक, विश्व कल्याण का ताज और स्थिति के तख्त पर विराजमान रहने वाले ही राजयोगी हैं।
“मीठे बच्चे - विनाश के पहले सबको बाप का परिचय देना है, धारणा कर दूसरों को समझाओ तब ऊंच पद मिल सकेगा'' | |
प्रश्नः- | राजयोगी स्टूडेन्ट्स को बाप का डायरेक्शन क्या है? |
उत्तर:- | तुम्हें डायरेक्शन है कि एक बाप का बनकर फिर औरों से दिल नहीं लगानी है। प्रतिज्ञा कर फिर पतित नहीं बनना है। तुम ऐसा सम्पूर्ण पावन बन जाओ जो बाप और टीचर की याद स्वत: निरन्तर बनी रहे। एक बाप से ही प्यार करो, उसे ही याद करो तो तुम्हें बहुत ताकत मिलती रहेगी। |
ओम् शान्ति। रूहानी बाप बैठ समझाते हैं। समझाते तब हैं जबकि यह शरीर है। सम्मुख ही समझाना होता है। जो सम्मुख समझाया जाता है वह फिर लिखत के द्वारा सबके पास जाता है। तुम यहाँ आते हो सम्मुख सुनने के लिए। बेहद का बाप आत्माओं को सुनाते हैं। आत्मा ही सुनती है। सब कुछ आत्मा ही करती है - इस शरीर द्वारा इसलिए पहले-पहले अपने को आत्मा जरूर समझना है। गायन है आत्मायें-परमात्मा अलग रहे बहुकाल......। सबसे पहले-पहले बाप से कौन बिछुड़कर आते हैं यहाँ पार्ट बजाने? तुमसे पूछेंगे कितना समय तुम बाप से अलग रहे हो? तो तुम कहेंगे 5 हज़ार वर्ष। पूरा हिसाब है ना। यह तो तुम बच्चों को पता है कैसे नम्बरवार आते हैं। बाप जो ऊपर में थे वह भी अभी नीचे आ गये हैं - तुम सबकी बैटरी चार्ज करने। अभी बाप को याद करना है। अभी तो बाप सम्मुख है ना। भक्ति मार्ग में तो बाप के आक्यूपेशन का पता ही नहीं है। नाम, रूप, देश, काल को जानते ही नहीं। तुमको तो नाम, रूप, देश, काल का सब पता है। तुम जानते हो इस रथ द्वारा बाप हमको सब राज़ समझाते हैं। रचता और रचना के आदि, मध्य, अन्त का राज़ समझाया है। यह कितना सूक्ष्म है। इस मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ का बीजरूप बाप ही है। वह यहाँ आते जरूर हैं। नई दुनिया स्थापन करना उनका ही काम है। ऐसे नहीं कि वहाँ बैठे स्थापना करते हैं। तुम बच्चे जानते हो बाबा इस तन द्वारा हमको सम्मुख समझा रहे हैं। यह भी बाप का प्यार करना हुआ ना। और कोई को भी उनकी बायोग्राफी का पता नहीं है। गीता है आदि सनातन देवी-देवता धर्म का शास्त्र। यह भी तुम जानते हो - इस ज्ञान के बाद है विनाश। विनाश जरूर होना है। और जो भी धर्म स्थापक आते हैं, उनके आने पर विनाश नहीं होता है। विनाश का टाइम ही यह है, इसलिए तुमको जो ज्ञान मिलता है वह फिर खलास हो जाता है। तुम बच्चों की बुद्धि में यह सब बातें हैं। तुम रचता और रचना को जान गये हो। हैं दोनों अनादि जो चलते आते हैं। बाप का पार्ट ही है संगम पर आने का। भक्ति आधाकल्प चलती है, ज्ञान नहीं चलता है। ज्ञान का वर्सा आधाकल्प के लिए मिलता है। ज्ञान तो एक ही बार सिर्फ संगम पर मिलता है। यह क्लास तुम्हारा एक ही बार चलता है। यह बातें अच्छी रीति समझ कर फिर औरों को समझाना भी है। पद का सारा मदार है सर्विस करने पर। तुम जानते हो पुरूषार्थ कर अब नई दुनिया में जाना है। धारणा कर और दूसरों को समझाना - इस पर ही तुम्हारा पद है। विनाश होने के पहले सबको बाप का परिचय देना है और रचना के आदि, मध्य, अन्त का परिचय देना है। तुम भी बाप को याद करते हो कि जन्म-जन्मान्तर के पाप कट जाएं। जब तक बाप पढ़ाते रहते हैं, याद जरूर करना है। पढ़ाने वाले के साथ योग तो रहेगा ना। टीचर पढ़ाते हैं तो उनके साथ योग रहता है। योग बिगर पढ़ेंगे कैसे? योग अर्थात् पढ़ाने वाले की याद। यह बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है। तीनों रूप में पूरा याद करना पड़ता है। यह सतगुरू तुम्हें एक ही बार मिलता है। ज्ञान से सद्गति मिली, बस फिर गुरू की रस्म ही खत्म। बाप, टीचर की रस्म चलती है, गुरू की रस्म खत्म हो जाती है। सद्गति मिल गई ना। निर्वाणधाम में तुम प्रैक्टिकल में जाते हो फिर अपने समय पर पार्ट बजाने आयेंगे। मुक्ति-जीवनमुक्ति दोनों तुमको मिल जाती हैं। मुक्ति भी जरूर मिलती है। थोड़े समय के लिए घर जाकर रहेंगे। यहाँ तो शरीर से पार्ट बजाना पड़ता है। पिछाड़ी में सब पार्टधारी आ जायेंगे। नाटक जब पूरा होता है तो सब एक्टर्स स्टेज पर आ जाते हैं। अभी भी सब एक्टर्स स्टेज पर आकर इकट्ठे हुए हैं। कितना घोर घमसान है। सतयुग आदि में इतना घोर घमसान नहीं था। अभी तो कितनी अशान्ति है। तो अब जैसे बाप को सृष्टि चक्र की नॉलेज है तो बच्चों को भी नॉलेज है। बीज को नॉलेज है ना - हमारा झाड़ कैसे वृद्धि को पाकर फिर खत्म होता है। अभी तुम बैठे हो नई दुनिया की सैपलिंग लगाने अथवा आदि सनातन देवी-देवता धर्म का सैपलिंग लगाने। तुमको पता है इन लक्ष्मी-नारायण ने राज्य कैसे पाया? तुम जानते हो हम अभी नई दुनिया का प्रिन्स बनेंगे। उस दुनिया में रहने वाले सब अपने को मालिक ही कहेंगे ना। जैसे अभी भी सब कहते हैं भारत हमारा देश है। तुम समझते हो अभी हम संगम पर खड़े हैं, शिवालय में जाने वाले हैं। बस, अभी गये कि गये। हम जाकर शिवालय के मालिक बनेंगे। तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही यह है। यथा राजा रानी तथा प्रजा, सब शिवालय के मालिक बन जाते हैं। बाकी राजधानी में भिन्न-भिन्न स्टेट्स तो होते ही हैं। वहाँ वजीर तो कोई होता ही नहीं। वजीर तब होते हैं जब पतित बनते हैं। लक्ष्मी-नारायण वा राम-सीता का वजीर नहीं सुना होगा क्योंकि वह खुद सतोप्रधान पावन बुद्धि वाले हैं। फिर जब पतित बनते हैं तब राजा-रानी एक वजीर रखते हैं राय लेने के लिए। अभी तो देखो अनेकानेक वजीर हैं।
तुम बच्चे जानते हो यह बहुत मजे का खेल है। खेल हमेशा मजे का ही होता है। सुख भी होता है, दु:ख भी होता है। इस बेहद के खेल को तुम बच्चे ही जानते हो। इसमें रोने-पीटने आदि की बात ही नहीं। गाते भी हैं बीती सो बीती देखो..... बनी-बनाई बन रही। यह नाटक तुम्हारी बुद्धि में है। हम इनके एक्टर्स हैं। हमारे 84 जन्मों का पार्ट एक्यूरेट अविनाशी है। जो जिस जन्म में जो एक्ट करते आये हैं वही करते रहेंगे। आज से 5 हज़ार वर्ष पहले भी तुमको यही कहा था कि अपने को आत्मा समझो। गीता में भी अक्षर हैं। तुम जानते हो बरोबर आदि सनातन देवी-देवता धर्म जब स्थापन हुआ था तो बाप ने कहा था देह के सब धर्म छोड़ अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो। मन्मनाभव का अर्थ तो बाप ने अच्छी रीति समझाया है। भाषा भी यही है। यहाँ देखो कितनी ढेर भाषायें हैं। भाषाओं पर भी कितना हंगामा है। भाषा बिगर तो काम चल न सके। ऐसी-ऐसी भाषायें सीखकर आते हैं जो मदर लैंगवेज खलास हो जाती है। जो जास्ती भाषायें सीखते हैं उनको इनाम मिलता है। जितने धर्म, उतनी भाषायें होंगी। वहाँ तो तुम जानते हो अपनी ही राजाई होगी। भाषा भी एक होगी। यहाँ तो 100 माइल पर एक भाषा है। वहाँ तो एक ही भाषा होती है। यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं तो उस बाप को ही याद करते रहो। शिवबाबा समझाते हैं ब्रह्मा द्वारा। रथ तो जरूर चाहिए ना। शिवबाबा हमारा बाप है। बाबा कहते हैं मेरे तो बेहद के बच्चे हैं। बाबा इन द्वारा पढ़ाते हैं ना। टीचर को कभी गले से थोड़ेही लगाते हैं। बाप तो तुमको पढ़ाने आये हैं। राजयोग सिखलाते हैं तो टीचर ठहरा ना। तुम स्टूडेन्ट हो। स्टूडेन्ट कभी टीचर को भाकी पहनते हैं क्या? एक बाप का बनकर फिर औरों से दिल नहीं लगानी है।
बाप कहते हैं मैं तुमको राजयोग सिखलाने आया हूँ ना। तुम शरीरधारी, हम अशरीरी ऊपर में रहने वाले। कहते हो - बाबा, पावन बनाने आओ तो गोया तुम पतित हो ना? फिर मेरे को भाकी कैसे पहन सकते? प्रतिज्ञा कर फिर पतित बन जाते हैं। जब एकदम पावन बन जायेंगे, पिछाड़ी में फिर याद में भी रहेंगे, टीचर को, गुरू को याद करते रहेंगे। अभी तो छी-छी बन गिर पड़ते हैं, और ही सौ गुणा दण्ड पड़ जाता है। यह तो बीच में दलाल के रूप में मिला है, उनको याद करना है। बाबा कहते हैं मैं भी उनका मुरब्बी बच्चा हूँ। फिर मैं कहाँ भाकी पहन सकता हूँ! तुम फिर भी इस शरीर द्वारा मिलते हो। मैं उनको कैसे भाकी पहनूँ? बाप तो कहते हैं - बच्चे, तुम एक बाप को ही याद करो, प्यार करो। याद से पॉवर बहुत मिलती है। बाप सर्वशक्तिमान् है। बाप से ही तुमको इतनी पॉवर मिलती है। तुम कितने बलवान बनते हो। तुम्हारी राजधानी पर कोई जीत पहन न सके। रावण राज्य ही खत्म हो जाता है। दु:ख देने वाला कोई रहता ही नहीं। उनको सुखधाम कहा जाता है। रावण सारे विश्व में सबको दु:ख देने वाला है। जानवर भी दु:खी होते हैं। वहाँ तो जानवर भी आपस में प्रेम से रहते हैं। यहाँ तो प्रेम है नहीं।
तुम बच्चे जानते हो यह ड्रामा कैसे फिरता है। इसके आदि-मध्य-अन्त का राज़ बाप ही समझाते हैं। कोई अच्छी रीति पढ़ते हैं, कोई कम पढ़ते हैं। पढ़ते तो सब हैं ना। सारी दुनिया भी पढ़ेगी अर्थात् बाप को याद करेगी। बाप को याद करना - यह भी पढ़ाई है ना। उस बाप को सब याद करते हैं, वह सर्व का सद्गति दाता, सबको सुख देने वाला है। कहते भी हैं आकर पावन बनाओ तो जरूर पतित ठहरे। वह तो आते ही हैं विकारियों को निर्विकारी बनाने। पुकारते भी हैं कि हे अल्लाह, आकर हमको पावन बनाओ। उनका यही धंधा है, इसलिए बुलाते हैं।
तुम्हारी भाषा भी करेक्ट होनी चाहिए। वो लोग कहते हैं अल्लाह, वह कहते हैं गॉड। गॉड फादर भी कहते हैं। पिछाड़ी वालों की बुद्धि फिर भी अच्छी रहती है। इतना दु:ख नहीं उठाते। तो अब तुम सम्मुख बैठे हो, क्या करते हो? बाबा को इस भृकुटी में देखते हो। बाबा फिर तुम्हारी भृकुटी में देखते हैं। जिसमें मैं प्रवेश करता हूँ, उनको देख सकता हूँ? वह तो बाजू में बैठा है, यह बड़ी समझने की बात है। मैं इनके बाजू में बैठा हुआ हूँ। यह भी समझता है, हमारे बाजू में बैठा है। तुम कहेंगे हम सामने दो को देखते हैं। बाप और दादा दोनों आत्मा को देखते हो। तुम्हारे में ज्ञान है - बापदादा किसको कहते हैं? आत्मा सामने बैठी है। भक्ति मार्ग में तो आंखें बन्द कर बैठ सुनते हैं। पढ़ाई कोई ऐसे थोड़ेही होती है। टीचर को तो देखना पड़े ना। यह तो बाप भी है, टीचर भी है तो सामने देखना होता है। सामने बैठे और आंखे बन्द हों, झुटका खाते रहें, ऐसी पढ़ाई तो होती नहीं। स्टूडेन्ट टीचर को जरूर देखता रहेगा। नहीं तो टीचर कहेंगे यह तो झुटका खाते रहते हैं। यह कोई भांग पीकर आये हैं। तुम्हारी बुद्धि में है बाबा इस तन में है। मैं बाबा को देखता हूँ। बाप समझाते हैं यह क्लास कॉमन नहीं है - जो कोई आंखे बन्दकर बैठे। स्कूल में कभी कोई आंखे बन्द करके बैठते हैं क्या? और सतसंगों को स्कूल नहीं कहा जाता है। भल गीता बैठ सुनाते हैं परन्तु उसको स्कूल नहीं कहा जाता। वह कोई बाप थोड़ेही है जिसको देखें। कोई-कोई शिव के भक्त होते हैं तो शिव को ही याद करते हैं, कान से कथा सुनते रहते। शिव की भक्ति करने वालों को शिव को ही याद करना पड़े। कोई भी सतसंग में प्रश्न-उत्तर आदि नहीं होता है। यहाँ होता है। यहाँ तुम्हारी आमदनी बहुत है। आमदनी में कभी उबासी नहीं आ सकती। धन मिलता है ना तो खुशी होती है। उबासी, ग़म की निशानी है। बीमार होगा वा देवाला निकला होगा तो उबासी आती रहेगी। पैसा मिलता रहेगा तो कभी उबासी नहीं आयेगी। बाबा व्यापारी भी है। रात को स्टीमर आते थे तो रात को जागना पड़ता था। कोई-कोई बेग़म रात को आती हैं तो सिर्फ फीमेल के लिए ही खुला रहता है। बाबा भी कहते हैं प्रदर्शनी आदि में फीमेल्स के लिए खास दिन रखो तो बहुत आयेंगी। पर्देनशीन भी आयेंगी। बहुएं पर्देनशीन रहती हैं। मोटर में भी पर्दा रहता है। यहाँ तो आत्मा की बात है। ज्ञान मिल गया तो पर्दा भी खुल जायेगा। सतयुग में पर्दा आदि होता नहीं। यह तो प्रवृत्ति मार्ग का ज्ञान है ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) यह खेल बड़ा मज़े का बना हुआ है, इसमें सुख और दु:ख का पार्ट नूँधा हुआ है इसलिए रोने पीटने की बात नहीं। बुद्धि में रहे बनी-बनाई बन रही, बीती का चिंतन नहीं करना है।
2) यह कॉमन क्लास नहीं है, इसमें आंखे बन्द करके नहीं बैठना है। टीचर को सामने देखना है। उबासी आदि नहीं लेनी है। उबासी गम (दु:ख) की निशानी है।
वरदान:- | सन्तुष्टता के तीन सर्टीफिकेट ले अपने योगी जीवन का प्रभाव डालने वाले सहजयोगी भव सन्तुष्टता योगी जीवन का विशेष लक्ष्य है, जो सदा सन्तुष्ट रहते और सर्व को सन्तुष्ट करते हैं उनके योगी जीवन का प्रभाव दूसरों पर स्वत: पड़ता है। जैसे साइन्स के साधनों का वायुमण्डल पर प्रभाव पड़ता है, ऐसे सहजयोगी जीवन का भी प्रभाव होता है। योगी जीवन के तीन सर्टीफिकेट हैं एक - स्व से सन्तुष्ट, दूसरा - बाप सन्तुष्ट और तीसरा - लौकिक अलौकिक परिवार सन्तुष्ट। |
स्लोगन:- | स्वराज्य का तिलक, विश्व कल्याण का ताज और स्थिति के तख्त पर विराजमान रहने वाले ही राजयोगी हैं। |
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08-12-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 13.02.2003 "बापदादा" मधुबन
“वर्तमान समय अपना रहमदिल और दाता स्वरूप प्रत्यक्ष करो''
आज वरदाता बाप अपने ज्ञान दाता, शक्ति दाता, गुण दाता, परमात्म सन्देश वाहक बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चा मास्टर दाता बन आत्माओं को बाप के समीप लाने के लिए दिल से प्रयत्न कर रहे हैं। विश्व में अनेक प्रकार की आत्मायें हैं, किन आत्माओं को ज्ञान अमृत चाहिए, अन्य आत्माओं को शक्ति चाहिए, गुण चाहिए, आप बच्चों के पास सर्व अखण्ड खजाने हैं। हर एक आत्मा की कामना पूर्ण करने वाले हो। दिन प्रतिदिन समय समाप्ति का समीप आने के कारण अब आत्मायें कोई नया सहारा ढूंढ रही हैं। तो आप आत्मायें नया सहारा देने के निमित्त बनी हुई हो। बापदादा बच्चों के उमंग-उत्साह को देख खुश है। एक तरफ आवश्यकता है और दूसरे तरफ उमंग-उत्साह है। आवश्यकता के समय एक बूंद का भी महत्व होता है। तो इस समय आपकी दी हुई अंचली का, सन्देश का भी महत्व है।
वर्तमान समय आप सभी बच्चों का रहमदिल और दाता स्वरूप प्रत्यक्ष होने का समय है। आप ब्राह्मण आत्माओं के अनादि स्वरूप में भी दातापन के संस्कार भरे हुए हैं इसलिए कल्प वृक्ष के चित्र में आप वृक्ष के जड़ में दिखाये हुए हैं क्योंकि जड़ द्वारा ही सारे वृक्ष को सब कुछ पहुंचता है। आपका आदि स्वरूप देवता रूप, उसका अर्थ ही है देव ता अर्थात् देने वाला। आपका मध्य का स्वरूप पूज्य चित्र हैं तो मध्य समय में भी पूज्य रूप में आप वरदान देने वाले, दुआयें देने वाले, आशीर्वाद देने वाले दाता रूप हो। तो आप आत्माओं का विशेष स्वरूप ही दातापन का है। तो अभी भी परमात्म सन्देश वाहक बन विश्व में बाप की प्रत्यक्षता का सन्देश फैला रहे हैं। तो हर एक ब्राह्मण बच्चा चेक करो कि अनादि, आदि दातापन के संस्कार हर एक के जीवन में सदा इमर्ज रूप में रहते हैं? दातापन के संस्कार वाली आत्माओं की निशानी है - वह कभी भी यह संकल्प-मात्र भी नहीं करते कि कोई दे तो देवें, कोई करे तो करें, नहीं। निरन्तर खुले भण्डार हैं। तो बापदादा चारों ओर के बच्चों के दातापन के संस्कार देख रहे थे। क्या देखा होगा? नम्बरवार तो है ही ना! कभी भी यह संकल्प नहीं करो - यह हो तो मैं भी यह करूं। दातापन के संस्कार वाले को सर्व तरफ से सहयोग स्वत: प्राप्त होता है। न सिर्फ आत्माओं द्वारा लेकिन प्रकृति भी समय प्रमाण सहयोगी बन जाती है। यह सूक्ष्म हिसाब है कि जो सदा दाता बनता है, उस पुण्य का फल समय पर सहयोग, समय पर सफलता उस आत्मा को सहज प्राप्त होता है इसलिए सदा दातापन के संस्कार इमर्ज रूप में रखो। पुण्य का खाता एक का 10 गुणा फल देता है। तो सारे दिन में नोट करो - संकल्प द्वारा, वाणी द्वारा, सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा पुण्य आत्मा बन पुण्य का खाता कितना जमा किया? मन्सा सेवा भी पुण्य का खाता जमा करती है। वाणी द्वारा किसी कमजोर आत्मा को खुशी में लाना, परेशान को शान की स्मृति में लाना, दिलशिकस्त आत्मा को अपनी वाणी द्वारा उमंग-उत्साह में लाना, सम्बन्ध-सम्पर्क से आत्मा को अपने श्रेष्ठ संग का रंग अनुभव कराना, इस विधि से पुण्य का खाता जमा कर सकते हो। इस जन्म में इतना पुण्य जमा करते हो जो आधाकल्प पुण्य का फल खाते हो और आधाकल्प आपके जड़ चित्र पापी आत्माओं को वायुमण्डल द्वारा पापों से मुक्त करते हैं। पतित-पावनी बन जाते हो। तो बापदादा हर एक बच्चे का जमा हुआ पुण्य का खाता देखते रहते हैं।
बापदादा वर्तमान समय का बच्चों का सेवा का उमंग-उत्साह देख खुश हो रहे हैं। मैजारिटी बच्चों में सेवा का उमंग अच्छा है। सभी अपने-अपने तरफ से सेवा का प्लैन प्रैक्टिकल में ला रहे हैं। इसके लिए बापदादा दिल से मुबारक दे रहे हैं। अच्छा कर रहे हैं और अच्छा करते रहेंगे। सबसे अच्छी बात यह है - सभी का संकल्प और समय बिजी हो गया है। हर एक को यह लक्ष्य है कि चारों ओर की सेवा से अभी उल्हनें को पूरा जरूर करना है।
ब्राह्मणों के दृढ़ संकल्प में बहुत शक्ति है। अगर ब्राह्मण दृढ़ संकल्प करें तो क्या नहीं हो सकता! सब हो जायेगा सिर्फ योग को ज्वाला रूप बनाओ। योग ज्वाला रूप बन जायेगा तो ज्वाला के पीछे आत्मायें स्वत: ही आ जायेंगी क्योंकि ज्वाला (लाइट) मिलने से उन्हों को रास्ता दिखाई देगा। अभी योग तो लगा रहे हैं लेकिन योग ज्वाला रूप होना है। सेवा का उमंग-उत्साह अच्छा बढ़ रहा है लेकिन योग में ज्वाला रूप अभी अण्डरलाइन करनी है। आपकी दृष्टि में ऐसी झलक आ जाए जो दृष्टि से कोई न कोई अनुभूति का अनुभव करें।
बापदादा को, फारेन वालों ने यह जो सेवा की थी - कॉल ऑफ टाइम वालों की, उसकी विधि अच्छी लगी कि छोटे से संगठन को समीप लाया। ऐसे हर ज़ोन, हर सेन्टर अलग-अलग सेवा तो कर रहे हो लेकिन कोई सर्व वर्गों का संगठन बनाओ। बापदादा ने कहा था कि बिखरी हुई सेवा बहुत है, लेकिन बिखरी हुई सेवा से कुछ समीप आने वाली योग्य आत्माओं का संगठन चुनो और समय प्रति समय उस संगठन को समीप लाते रहो और उन्हों को सेवा का उमंग बढ़ाओ। बापदादा देखते हैं कि ऐसी आत्मायें हैं लेकिन अभी वह पॉवरफुल पालना, संगठित रूप में नहीं मिल रही है। अलग-अलग यथाशक्ति पालना मिल रही है, संगठन में एक दो को देखकर भी उमंग आता है। यह, ये कर सकता है, मैं भी कर सकता हूँ, मैं भी करूंगा, तो उमंग आता है। बापदादा अभी सेवा का प्रत्यक्ष संगठित रूप देखने चाहते हैं। मेहनत अच्छी कर रहे हो, हर एक अपने वर्ग की, एरिया की, ज़ोन की, सेन्टर की कर रहे हो, बापदादा खुश होते हैं। अब कुछ सामने लाओ। प्रवृत्ति वालों का भी उमंग बापदादा के पास पहुंचता है और डबल फारेनर्स का भी डबल कार्य में रहते सेवा में स्वयं के पुरुषार्थ में उमंग अच्छा है, यह देख करके भी बाप-दादा खुश है।
ब्राह्मण आत्मायें वर्तमान वायुमण्डल को देख विदेश में डरते तो नहीं हैं? कल क्या होगा, कल क्या होगा... यह तो नहीं सोचते हैं? कल अच्छा होगा। अच्छा है और अच्छा ही होना है। जितनी दुनिया में हलचल होगी उतनी ही आप ब्राह्मणों की स्टेज अचल होगी। ऐसे है? डबल विदेशी हलचल है या अचल है? अचल है? हलचल में तो नहीं हैं ना! जो अचल हैं वह हाथ उठाओ। अचल हैं? कल कुछ हो जाये तो? तो भी अचल हैं ना! क्या होगा, कुछ नहीं होगा। आप ब्राह्मणों के ऊपर परमात्म छत्रछाया है। जैसे वाटरप्रूफ कितना भी वाटर हो लेकिन वाटरप्रूफ द्वारा वाटरप्रूफ हो जाते हैं। ऐसे ही कितनी भी हलचल हो लेकिन ब्राह्मण आत्मायें परमात्म छत्रछाया के अन्दर सदा प्रूफ हैं। बेफिकर बादशाह हो ना! कि थोड़ा-थोड़ा फिकर है, क्या होगा? नहीं। बेफिकर। स्वराज्य अधिकारी बन, बेफिकर बादशाह बन, अचल-अडोल सीट पर सेट रहो। सीट से नीचे नहीं उतरो। अपसेट होना अर्थात् सीट पर सेट नहीं है तो अपसेट हैं। सीट पर सेट जो है वह स्वप्न में भी अपसेट नहीं हो सकता।
मातायें क्या समझती हो? सीट पर सेट होना, बैठना आता है? हलचल तो नहीं होती ना! बापदादा कम्बाइन्ड है, जब सर्वशक्तिवान आपके कम्बाइन्ड है तो आपको क्या डर है! अकेले समझेंगे तो हलचल में आयेंगे। कम्बाइन्ड रहेंगे तो कितनी भी हलचल हो लेकिन आप अचल रहेंगे। ठीक है मातायें? ठीक है ना, कम्बाइन्ड हैं ना! अकेले तो नहीं? बाप की जिम्मेवारी है, अगर आप सीट पर सेट हो तो बाप की जिम्मेवारी है, अपसेट हो तो आपकी जिम्मेवारी है।
आत्माओं को सन्देश द्वारा अंचली देते रहेंगे तो दाता स्वरूप में स्थित रहेंगे, तो दातापन के पुण्य का फल शक्ति मिलती रहेगी। चलते फिरते अपने को आत्मा करावनहार है और यह कर्मेन्द्रियां करनहार कर्मचारी हैं, यह आत्मा की स्मृति का अनुभव सदा इमर्ज रूप में हो, ऐसे नहीं कि मैं तो हूँ ही आत्मा। नहीं, स्मृति में इमर्ज हो। मर्ज रूप में रहता है लेकिन इमर्ज रूप में रहने से वह नशा, खुशी और कन्ट्रोलिंग पावर रहती है। मजा भी आता है, क्यों! साक्षी हो करके कर्म कराते हो। तो बार-बार चेक करो कि करावनहार होकर कर्म करा रही हूँ? जैसे राजा अपने कर्मचारियों को आर्डर में रखते हैं, आर्डर से कराते हैं, ऐसे आत्मा करावनहार स्वरूप की स्मृति रहे तो सर्व कर्मेन्द्रियां आर्डर में रहेंगी। माया के आर्डर में नहीं रहेंगी, आपके आर्डर में रहेंगी। नहीं तो माया देखती है कि करावनहार आत्मा अलबेली हो गई है तो माया आर्डर करने लगती है। कभी संकल्प शक्ति, कभी मुख की शक्ति माया के आर्डर में चल पड़ती है इसीलिए सदा हर कर्मेन्द्रियों को अपने आर्डर में चलाओ। ऐसे नहीं कहेंगे - चाहते तो नहीं थे, लेकिन हो गया। जो चाहते हैं वही होगा। अभी से राज्य अधिकारी बनने के संस्कार भरेंगे तब ही वहाँ भी राज्य चलायेंगे। स्वराज्य अधिकारी की सीट से कभी भी नीचे नहीं आओ। अगर कर्मेन्द्रियां आर्डर पर रहेंगी तो हर शक्ति भी आपके आर्डर में रहेगी। जिस शक्ति की जिस समय आवश्यकता है उस समय जी हाजिर हो जायेगी। ऐसे नहीं काम पूरा हो जाए और आप आर्डर करो सहनशक्ति आओ, काम पूरा हो जाये फिर आवे। हर शक्ति आपके आर्डर पर जी हाजिर होगी क्योंकि यह हर शक्ति परमात्म देन है। तो परमात्म देन आपकी चीज़ हो गई। तो अपनी चीज़ को जैसे भी यूज़ करो, जब भी यूज़ करो, ऐसे यह सर्व शक्तियां आपके आर्डर पर रहेंगी, सर्व कर्मेन्द्रियां आपके आर्डर पर रहेंगी, इसको कहा जाता है स्वराज्य अधिकारी, मास्टर सर्वशक्तिवान। ऐसे है पाण्डव? मास्टर सर्व शक्तिवान भी हैं और स्वराज्य अधिकारी भी हैं। ऐसे नहीं कहना कि मुख से निकल गया, किसने आर्डर दिया जो निकल गया! देखने नहीं चाहते थे, देख लिया। करने नहीं चाहते थे, कर लिया। यह किसके आर्डर पर होता है? इसको अधिकारी कहेंगे या अधीन कहेंगे? तो अधिकारी बनो, अधीन नहीं। अच्छा।
बापदादा कहते हैं जैसे अभी मधुबन में सब बहुत-बहुत खुश हो, ऐसे ही सदा खुश-आबाद रहना। रूहे गुलाब हैं। देखो, चारों ओर देखो सभी रूहे गुलाब खिले हुए गुलाब हैं। मुरझाये हुए नहीं हैं, खिले हुए गुलाब हैं। तो सदा ऐसे ही खुशनसीब और खुशनुम: चेहरे में रहना। कोई आपके चेहरे को देखे तो आपसे पूछे - क्या मिला है आपको, बड़े खुश हो! हर एक का चेहरा बाप का परिचय दे। जैसे चित्र परिचय देते हैं ऐसे आपका चेहरा बाप का परिचय दे कि बाप मिला है। अच्छा।
सब ठीक हैं? विदेश वाले भी पहुंच गये हैं। अच्छा लगता है ना यहाँ? (मोहिनी बहन, न्यूयार्क) चलो हलचल सुनने से तो बच गई। अच्छा किया है, सभी इकट्ठे पहुंच गये हैं, बहुत अच्छा किया है। अच्छा - डबल फारेनर्स, डबल नशा है ना! कहो इतना नशा है जो दिल कहता है कि अगर हैं तो हम डबल विदेशी हैं। डबल नशा है, स्वराज्य अधिकारी सो विश्व अधिकारी। डबल नशा है ना! बापदादा को भी अच्छा लगता है। अगर किसी भी ग्रुप में डबल विदेशी नहीं होते हैं तो अच्छा नहीं लगता है। विश्व का पिता है ना तो विश्व के चाहिए ना! सब चाहिए। मातायें नहीं हों तो भी रौनक नहीं। पाण्डव नहीं हो तो भी रौनक कम हो जाती है। देखो जिस सेन्टर पर कोई पाण्डव नहीं हो सिर्फ मातायें हों तो अच्छा लगेगा! और सिर्फ पाण्डव हों, शक्तियां नहीं हो, तो भी सेवाकेन्द्र का श्रंगार नहीं लगता है। दोनों चाहिए। बच्चे भी चाहिए। बच्चे कहते हैं, हमारा नाम क्यों नहीं लिया। बच्चों की भी रौनक है।
अच्छा - अभी एक सेकण्ड में निराकारी आत्मा बन निराकार बाप की याद में लवलीन हो जाओ। (ड्रिल)
चारों ओर के सर्व स्वराज्य अधिकारी, सदा साक्षीपन की सीट पर सेट रहने वाली अचल अडोल आत्मायें, सदा दातापन की स्मृति से सर्व को ज्ञान, शक्ति, गुण देने वाले रहमदिल आत्माओं को, सदा अपने चेहरे से बाप का चित्र दिखाने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा खुशनसीब, खुशनुम: रहने वाले रूहे गुलाब, रूहानी गुलाब बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
दादियों से:- (सेवा के साथ सब तरफ 108 घण्टे योग के भी अच्छे प्रोग्राम चल रहे हैं) इस योग ज्वाला से ही विनाश ज्वाला फोर्स में आयेगी। अभी देखो बनाते हैं प्रोग्राम, फिर सोच में पड़ जाते हैं। योग से विकर्म विनाश होंगे, पाप कर्म का बोझ भस्म होगा, सेवा से पुण्य का खाता जमा होगा। तो पुण्य का खाता जमा कर रहे हैं लेकिन पिछले जो कुछ संस्कार का बोझ है, वह भस्म योग ज्वाला से होगा। साधारण योग से नहीं। अभी क्या है, योग तो लगाते हैं लेकिन पाप भस्म होने का ज्वाला रूप नहीं है इसलिए थोड़ा टाइम खत्म होता है फिर निकल आता है इसलिए रावण को देखो, मारते हैं, जलाते हैं फिर हड्डियां भी पानी में डाल देते हैं। बिल्कुल भस्म हो जाए, पिछले संस्कार, कमजोर संस्कार बिल्कुल भस्म हो जाएं, भस्म नहीं हुए हैं। मरते हैं लेकिन भस्म नहीं होते हैं, मरने के बाद फिर जिंदा हो जाते हैं। संस्कार परिवर्तन से संसार परिवर्तन होगा। अभी संस्कारों की लीला चल रही है। संस्कार बीच-बीच में इमर्ज होते हैं ना! नामनिशान खत्म हो जाए, संस्कार परिवर्तन - यह है विशेष अण्डरलाइन की बात। संस्कार परिवर्तन नहीं हैं तो व्यर्थ संकल्प भी हैं। व्यर्थ समय भी है, व्यर्थ नुकसान भी है। होना तो है ही। संस्कार मिलन की महारास गाई हुई है। अभी रास होती है, महारास नहीं हुई है। (महारास क्यों नहीं होती हैं?) अण्डरलाइन नहीं है, दृढ़ता नहीं है। अलबेलापन भिन्न-भिन्न प्रकार का है। अच्छा!
वरदान:-
कर्मयोगी बन हर संकल्प, बोल और कर्म श्रेष्ठ बनाने वाले निरन्तर योगी भव
कर्मयोगी आत्मा का हर कर्म योगयुक्त, युक्तियुक्त होगा। अगर कोई भी कर्म युक्तियुक्त नहीं होता तो समझो योगयुक्त नहीं हैं। अगर साधारण वा व्यर्थ कर्म हो जाता है तो निरन्तर योगी नहीं कहेंगे। कर्मयोगी अर्थात् हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर बोल सदा श्रेष्ठ हो। श्रेष्ठ कर्म की निशानी है - स्वयं भी सन्तुष्ट और दूसरे भी सन्तुष्ट। ऐसी आत्मा ही निरन्तर योगी बनती है।
स्लोगन:-
स्वयं प्रिय, लोक प्रिय और प्रभू प्रिय आत्मा ही वरदानी मूर्त है।
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05-12-2024 प्रात:मुरलीओम् शान्ति"बापदादा"' मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हें जो भी ज्ञान मिलता है, उस पर विचार सागर मंथन करो, ज्ञान मंथन से ही अमृत निकलेगा'' प्रश्नः- 21 जन्मों के लिए मालामाल बनने का साधन क्या है? उत्तर:- ज्ञान रत्न। जितना तुम इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर ज्ञान रत्न धारण करते हो उतना मालामाल बनते हो। अभी के ज्ञान रत्न वहाँ हीरे जवाहरात बन जाते हैं। जब आत्मा ज्ञान रत्न धारण करे, मुख से ज्ञान रत्न निकाले, रत्न ही सुने और सुनाये तब उनके हर्षित चेहरे से बाप का नाम बाला हो। आसुरी गुण निकलें तब मालामाल बनें
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपनी साहूकारी, पोज़ीशन आदि का अहंकार मिटा देना है। अविनाशी ज्ञान धन से स्वयं को मालामाल बनाना है। सर्विस में कभी भी थकना नहीं है।
2) वातावरण को अच्छा रखने के लिए मुख से सदैव रत्न निकालने हैं। दु:ख देने वाले बोल न निकलें यह ध्यान रखना है। हर्षितमुख रहना है।
वरदान:- कैसे भी वायुमण्डल में मन-बुद्धि को सेकण्ड में एकाग्र करने वाले सर्वशक्ति सम्पन्न भव
बापदादा ने सभी बच्चों को सर्वशक्तियां वर्से में दी हैं। याद की शक्ति का अर्थ है - मन-बुद्धि को जहाँ लगाना चाहो वहाँ लग जाए। कैसे भी वायुमण्डल के बीच अपने मन-बुद्धि को सेकण्ड में एकाग्र कर लो। परिस्थिति हलचल की हो, वायुमण्डल तमोगुणी हो, माया अपना बनाने का प्रयत्न कर रही हो फिर भी सेकण्ड में एकाग्र हो जाओ - ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर हो तब कहेंगे सर्वशक्ति सम्पन्न। स्लोगन:- विश्व कल्याण की जिम्मेवारी और पवित्रता की लाइट का ताज पहनने वाले ही डबल ताजधारी बनते हैं।
04-12-2024 प्रात:मुरलीओम् शान्ति"बापदादा"' मधुबन
“मीठे बच्चे - सारा मदार याद पर है, याद से ही तुम मीठे बन जायेंगे, इस याद में ही माया की युद्ध चलती है'' प्रश्नः- इस ड्रामा में कौन सा राज़ बहुत विचार करने योग्य है? जिसे तुम बच्चे ही जानते हो? उत्तर:- तुम जानते हो कि ड्रामा में एक पार्ट दो बार बज न सके। सारी दुनिया में जो भी पार्ट बजता है वह एक दो से नया। तुम विचार करते हो कि सतयुग से लेकर अब तक कैसे दिन बदल जाते हैं। सारी एक्टिविटी बदल जाती है। आत्मा में 5 हजार वर्ष की एक्टिविटी का रिकॉर्ड भरा हुआ है, जो कभी बदल नहीं सकता। यह छोटी सी बात तुम बच्चों के सिवाए और किसी की बुद्धि में नहीं आ सकती।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) एक बाप की कशिश में रहकर खुशबूदार फूल बनना है। अपने स्वीट बाप को याद कर देह-अभिमान के कांटे को जला देना है।
2) इस हीरे तुल्य जन्म में अविनाशी कमाई जमा करनी है, कौड़ियों के बदले इसे गंवाना नहीं है। एक बाप से सच्चा प्यार करना है, एक के संग में रहना है।
वरदान:- ब्राह्मण जीवन में सदा खुशी की खुराक खाने और खुशी बांटने वाले खुशनसीब भव
इस दुनिया में आप ब्राह्मणों जैसा खुशनसीब कोई हो नहीं सकता क्योंकि इस जीवन में ही आप सबको बापदादा का दिलतख्त मिलता है। सदा खुशी की खुराक खाते हो और खुशी बांटते हो। इस समय बेफिक्र बादशाह हो। ऐसी बेफिक्र जीवन सारे कल्प में और किसी भी युग में नहीं है। सतयुग में बेफिक्र होंगे लेकिन वहाँ ज्ञान नहीं होगा, अभी आपको ज्ञान है इसलिए दिल से निकलता है मेरे जैसा खुशनसीब कोई नहीं। स्लोगन:- संगमयुग के स्वराज्य अधिकारी ही भविष्य के विश्व राज्य अधिकारी बनते हैं।
03-12-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - याद की यात्रा में अलबेले मत बनो, याद से ही आत्मा पावन बनेगी, बाप आये हैं सभी आत्माओं की सेवा कर उन्हें शुद्ध बनाने''
प्रश्नः-
कौन-सी स्मृति बनी रहे तो खान-पान शुद्ध हो जायेगा?
उत्तर:-
यदि स्मृति रहे कि हम बाबा के पास आये हैं सचखण्ड में जाने के लिए वा मनुष्य से देवता बनने के लिए तो खान-पान शुद्ध हो जायेगा क्योंकि देवतायें कभी अशुद्ध चीज़ नहीं खाते। जब हम सत्य बाबा के पास आये हैं सचखण्ड, पावन दुनिया का मालिक बनने तो पतित (अशुद्ध) बन नहीं सकते।
ओम् शान्ति। रूहानी बाप रूहानी बच्चों से पूछते हैं - बच्चे, तुम जब यहाँ बैठते हो तो किसको याद करते हो? अपने बेहद के बाप को। वह कहाँ है? उनको पुकारा जाता है ना - हे पतित-पावन! आजकल संन्यासी भी कहते रहते हैं पतित-पावन सीताराम अर्थात् पतितों को पावन बनाने वाले राम आओ। यह तो बच्चे समझते हैं पावन दुनिया सतयुग को, पतित दुनिया कलियुग को कहा जाता है। अभी तुम कहाँ बैठे हो? कलियुग के अन्त में इसलिए पुकारते हैं बाबा आकर हमको पावन बनाओ। हम कौन हैं? आत्मा। आत्मा को ही पवित्र बनना है। आत्मा पवित्र बनती है तो शरीर भी पवित्र मिलता है। आत्मा के पतित बनने से शरीर भी पतित मिलता है। यह शरीर तो मिट्टी का पुतला है। आत्मा तो अविनाशी है। आत्मा इन आरगन्स द्वारा कहती है, पुकारती है - हम बहुत पतित बन गये हैं, हमको आकर पावन बनाओ। बाप पावन बनाते हैं। 5 विकारों रूपी रावण पतित बनाते हैं। बाप ने अभी स्मृति दिलाई है - हम पावन थे फिर ऐसे 84 जन्म लेते-लेते अभी अन्तिम जन्म में हैं। यह जो मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ है, बाप कहते हैं मैं इनका बीजरूप हूँ, मुझे बुलाते हैं - हे परमपिता परमात्मा, ओ गाड फॉदर, लिबरेट मी। हर एक अपने लिए कहते हैं मुझे छुड़ाओ भी और पण्डा बनकर शान्तिधाम घर में ले चलो। संन्यासी आदि भी कहते हैं स्थाई शान्ति कैसे मिले? अब शान्तिधाम तो है घर। जहाँ से आत्मायें पार्ट बजाने आती हैं। वहाँ सिर्फ आत्मायें ही हैं शरीर नहीं है। आत्मायें नंगी अर्थात् शरीर बिगर रहती हैं। नंगे का अर्थ यह नहीं कि कपड़े पहनने बिगर रहना। नहीं, शरीर बिगर आत्मायें नंगी (अशरीरी) रहती हैं। बाप कहते हैं - बच्चे, तुम आत्मायें वहाँ मूलवतन में बिगर शरीर रहती हो, उसे निराकारी दुनिया कहा जाता है।
बच्चों को सीढ़ी पर समझाया गया है - कैसे हम सीढ़ी नीचे उतरते आये हैं। पूरे 84 जन्म लगे हैं मैक्सीमम। फिर कोई एक जन्म भी लेते हैं। आत्मायें ऊपर से आती ही रहती हैं। अभी बाप कहते हैं मैं आया हूँ पावन बनाने। शिवबाबा, ब्रह्मा द्वारा तुम्हें पढ़ाते हैं। शिवबाबा है आत्माओं का बाप और ब्रह्मा को आदि देव कहते हैं। इस दादा में बाप कैसे आते हैं, यह तुम बच्चे ही जानते हो। मुझे बुलाते भी हैं - हे पतित-पावन आओ। आत्माओं ने इस शरीर द्वारा बुलाया है। मुख्य आत्मा है ना। यह है ही दु:खधाम। यहाँ कलियुग में देखो बैठे-बैठे अचानक मृत्यु हो जाती है, वहाँ ऐसे कोई बीमार ही नहीं होते। नाम ही है स्वर्ग। कितना अच्छा नाम है। कहने से दिल खुश हो जाता है। क्रिश्चियन भी कहते हैं क्राइस्ट से 3 हज़ार वर्ष पहले पैराडाइज़ था। यहाँ भारतवासियों को तो कुछ भी पता नहीं है क्योंकि उन्होंने सुख बहुत देखा है तो दु:ख भी बहुत देख रहे हैं। तमोप्रधान बने हैं। 84 जन्म भी इन्हों के हैं। आधाकल्प बाद फिर और धर्म वाले आते हैं। अभी तुम समझते हो आधाकल्प देवी-देवतायें थे तो और कोई धर्म नहीं था। फिर त्रेता में जब राम हुआ तो भी इस्लामी-बौद्धी नहीं थे। मनुष्य तो बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं। कह देते दुनिया की आयु लाखों वर्ष है, इसलिए मनुष्य मूँझते हैं कि कलियुग अजुन छोटा बच्चा है। तुम अभी समझते हो कलियुग पूरा हो अभी सतयुग आयेगा इसलिए तुम आये हो बाप से स्वर्ग का वर्सा लेने। तुम सब स्वर्गवासी थे। बाप आते ही हैं स्वर्ग स्थापन करने। तुम ही स्वर्ग में आते हो, बाकी सब शान्तिधाम घर चले जाते हैं। वह है स्वीट होम, आत्मायें वहाँ निवास करती हैं। फिर यहाँ आकर पार्टधारी बनते हैं। शरीर बिगर तो आत्मा बोल भी न सके। वहाँ शरीर न होने कारण आत्मायें शान्ति में रहती हैं। फिर आधा-कल्प हैं देवी-देवतायें, सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी। फिर द्वापर-कलियुग में होते हैं मनुष्य। देवताओं का राज्य था फिर अब वह कहाँ गये? किसको पता नहीं। यह नॉलेज अभी तुमको बाप से मिलती है। और कोई मनुष्य में यह नॉलेज होती नहीं। बाप ही आकर मनुष्यों को यह नॉलेज देते हैं, जिससे ही मनुष्य से देवता बनते हैं। तुम यहाँ आये ही हो मनुष्य से देवता बनने के लिए। देवताओं का खान-पान अशुद्ध नहीं होता, वे कभी बीड़ी आदि पीते नहीं। यहाँ के पतित मनुष्यों की बात मत पूछो - क्या-क्या खाते हैं! अब बाप समझाते हैं यह भारत पहले सचखण्ड था। जरूर सच्चे बाप ने स्थापन किया होगा। बाप को ही ट्रूथ कहा जाता है। बाप ही कहते हैं मैं ही इस भारत को सचखण्ड बनाता हूँ। तुम सच्चे देवतायें कैसे बन सकते हो, वह भी तुमको सिखलाता हूँ। कितने बच्चे यहाँ आते हैं इसलिए यह मकान आदि बनवाने पड़ते हैं। अन्त तक भी बनते रहेंगे, बहुत बनेंगे। मकान खरीद भी करते हैं। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा कार्य करते हैं। ब्रह्मा हो गया सांवरा क्योंकि यह बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है ना। यह फिर गोरा बनेगा। कृष्ण का भी चित्र गोरा और सांवरा है ना। म्युज़ियम में बड़े-बड़े अच्छे चित्र हैं, जिस पर तुम किसको अच्छी रीति समझा सकते हो। यहाँ बाबा म्युजियम नहीं बनवाते हैं इनको कहा जाता है टॉवर आफ साइलेन्स। तुम जानते हो हम शान्तिधाम अपने घर जाते हैं। हम वहाँ के रहने वाले हैं फिर यहाँ आकर शरीर ले पार्ट बजाते हैं। बच्चों को पहले-पहले यह निश्चय होना चाहिए कि यह कोई साधू-सन्त नहीं पढ़ाते हैं। यह (दादा) तो सिंध का रहने वाला था परन्तु इसमें जो प्रवेश कर बोलते हैं - वह है ज्ञान का सागर। उनको कोई जानते ही नहीं। कहते भी हैं गॉड फादर। परन्तु कह देते उनका नाम-रूप है ही नहीं। वह निराकार है, उनका कोई आकार नहीं है। फिर कह देते वह सर्वव्यापी है। अरे, परमात्मा कहाँ है? कहेंगे वह सर्वव्यापी है, सबके अन्दर है। अरे, हर एक के अन्दर आत्मा बैठी है, सब भाई-भाई हैं ना, फिर घट-घट में परमात्मा कहाँ से आया? ऐसे नहीं कहेंगे परमात्मा भी है और आत्मा भी है। परमात्मा बाप को बुलाते हैं, बाबा आकर हम पतितों को पावन बनाओ। मुझे तुम बुलाते हो यह धंधा, यह सेवा करने लिए। हम सभी को आकर शुद्ध बनाओ। पतित दुनिया में हमको निमंत्रण देते हो, कहते हो बाबा हम पतित हैं। बाप तो पावन दुनिया देखते ही नहीं। पतित दुनिया में ही तुम्हारी सेवा करने के लिए आये हैं। अब यह रावण राज्य विनाश हो जायेगा। बाकी तुम जो राजयोग सीखते हो वह जाकर राजाओं का राजा बनते हो। तुमको अनगिनत बार पढ़ाया है फिर 5 हज़ार वर्ष बाद तुमको ही पढ़ायेंगे। सतयुग-त्रेता की राजधानी अब स्थापन हो रही है। पहले है ब्राह्मण कुल। प्रजापिता ब्रह्मा गाया जाता है ना, जिसको एडम आदि देव कहते हैं। यह कोई को पता नहीं है। बहुत हैं जो यहाँ आकर सुनकर फिर माया के वश हो जाते हैं। पुण्य आत्मा बनते-बनते पाप आत्मा बन पड़ते हैं। माया बड़ी जबरदस्त है। सबको पाप आत्मा बना देती है। यहाँ कोई भी पवित्र आत्मा, पुण्य आत्मा है नहीं। पवित्र आत्मायें देवी-देवता ही थे, जब सभी पतित बन जाते हैं तब बाप को बुलाते हैं। अभी यह है रावण राज्य पतित दुनिया, इनको कहा जाता है कांटों का जंगल। सतयुग को कहा जाता है गार्डन ऑफ फ्लावर्स। मुगल गार्डन में कितने फर्स्टक्लास अच्छे-अच्छे फूल होते हैं। अक के भी फूल मिलेंगे परन्तु इसका अर्थ कोई भी समझते नहीं हैं, शिव के ऊपर अक क्यों चढ़ाते हैं? यह भी बाप बैठ समझाते हैं। मैं जब पढ़ाता हूँ तो उनमें कोई फर्स्टक्लास मोतिये, कोई रतन ज्योत, कोई फिर अक के भी हैं। नम्बरवार तो हैं ना। तो इसको कहा ही जाता है दु:खधाम, मृत्युलोक। सतयुग है अमरलोक। यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। शास्त्र तो इस दादा ने पढ़े हैं, बाप तो शास्त्र नहीं पढ़ायेंगे। बाप तो खुद सद्गति दाता है। करके गीता को रेफर करते हैं। सर्वशास्त्रमई शिरोमणी गीता भगवान ने गाई है परन्तु भगवान किसको कहा जाता है, यह भारतवासियों को पता नहीं। बाप कहते हैं मैं निष्काम सेवा करता हूँ, तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ, मैं नहीं बनता हूँ। स्वर्ग में तुम मुझे याद नहीं करते हो। दु:ख में सिमरण सब करें, सुख में करे न कोय। इनको दु:ख और सुख का खेल कहा जाता है। स्वर्ग में और कोई दूसरा धर्म होता ही नहीं। वह सभी आते ही हैं बाद में। तुम जानते हो अभी इस पुरानी दुनिया का विनाश हो जायेगा, नैचुरल कैलेमिटीज़ तूफान आयेंगे जोर से। सब खत्म हो जायेंगे।
तो बाप अभी आकर बेसमझदार से समझदार बनाते हैं। बाप ने कितना धन माल दिया था, सब कहाँ गया? अभी कितने इनसालवेन्ट बन गये हैं। भारत जो सोने की चिड़िया था वह अब क्या बन पड़ा है? अब फिर पतित-पावन बाप आये हुए हैं राजयोग सिखला रहे हैं। वह है हठयोग, यह है राजयोग। यह राजयोग दोनों के लिए है, वह हठयोग सिर्फ पुरूष ही सीखते हैं। अब बाप कहते हैं पुरूषार्थ करो, विश्व का मालिक बनकर दिखाओ। अब इस पुरानी दुनिया का विनाश तो होना ही है बाकी थोड़ा समय है, यह लड़ाई अन्तिम लड़ाई है। यह लड़ाई शुरू होगी तो रूक नहीं सकती। यह लड़ाई शुरू ही तब होगी जब तुम कर्मातीत अवस्था को पायेंगे और स्वर्ग में जाने के लायक बन जायेंगे। बाप फिर भी कहते हैं याद की यात्रा में अलबेले नहीं बनो, इसमें ही माया विघ्न डालती है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप द्वारा अच्छी रीति पढ़कर फर्स्टक्लास फूल बनना है, कांटों के इस जंगल को फूलों का बगीचा बनाने में बाप को पूरी मदद करनी है।
2) कर्मातीत अवस्था को प्राप्त करने वा स्वर्ग में ऊंच पद का अधिकार प्राप्त करने के लिए याद की यात्रा में तत्पर रहना है, अलबेला नहीं बनना है।
वरदान:-
अपने मस्तक पर सदा बाप की दुआओं का हाथ अनुभव करने वाले मास्टर विघ्न-विनाशक भव
गणेश को विघ्न विनाशक कहते हैं। विघ्न विनाशक वही बनते जिनमें सर्व शक्तियां हैं। सर्वशक्तियों को समय प्रमाण कार्य में लगाओ तो विघ्न ठहर नहीं सकते। कितने भी रूप से माया आये लेकिन आप नॉलेजफुल बनो। नॉलेजफुल आत्मा कभी माया से हार खा नहीं सकती। जब मस्तक पर बापदादा की दुआओं का हाथ है तो विजय का तिलक लगा हुआ है। परमात्म हाथ और साथ विघ्न-विनाशक बना देता है।
स्लोगन:-
स्वयं में गुणों को धारण कर दूसरों को गुणदान करने वाले ही गुणमूर्त हैं।
08-12-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 13.02.2003 "बापदादा" मधुबन “वर्तमान समय अपना रहमदिल और दाता स्वरूप प्रत्यक्ष करो'' आज वरदाता बाप अपने ज्ञान दाता, शक्ति दाता, गुण दाता, परमात्म सन्देश वाहक बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चा मास्टर दाता बन आत्माओं को बाप के समीप लाने के लिए दिल से प्रयत्न कर रहे हैं। विश्व में अनेक प्रकार की आत्मायें हैं, किन आत्माओं को ज्ञान अमृत चाहिए, अन्य आत्माओं को शक्ति चाहिए, गुण चाहिए, आप बच्चों के पास सर्व अखण्ड खजाने हैं। हर एक आत्मा की कामना पूर्ण करने वाले हो। दिन प्रतिदिन समय समाप्ति का समीप आने के कारण अब आत्मायें कोई नया सहारा ढूंढ रही हैं। तो आप आत्मायें नया सहारा देने के निमित्त बनी हुई हो। बापदादा बच्चों के उमंग-उत्साह को देख खुश है। एक तरफ आवश्यकता है और दूसरे तरफ उमंग-उत्साह है। आवश्यकता के समय एक बूंद का भी महत्व होता है। तो इस समय आपकी दी हुई अंचली का, सन्देश का भी महत्व है। वर्तमान समय आप सभी बच्चों का रहमदिल और दाता स्वरूप प्रत्यक्ष होने का समय है। आप ब्राह्मण आत्माओं के अनादि स्वरूप में भी दातापन के संस्कार भरे हुए हैं इसलिए कल्प वृक्ष के चित्र में आप वृक्ष के जड़ में दिखाये हुए हैं क्योंकि जड़ द्वारा ही सारे वृक्ष को सब कुछ पहुंचता है। आपका आदि स्वरूप देवता रूप, उसका अर्थ ही है देव ता अर्थात् देने वाला। आपका मध्य का स्वरूप पूज्य चित्र हैं तो मध्य समय में भी पूज्य रूप में आप वरदान देने वाले, दुआयें देने वाले, आशीर्वाद देने वाले दाता रूप हो। तो आप आत्माओं का विशेष स्वरूप ही दातापन का है। तो अभी भी परमात्म सन्देश वाहक बन विश्व में बाप की प्रत्यक्षता का सन्देश फैला रहे हैं। तो हर एक ब्राह्मण बच्चा चेक करो कि अनादि, आदि दातापन के संस्कार हर एक के जीवन में सदा इमर्ज रूप में रहते हैं? दातापन के संस्कार वाली आत्माओं की निशानी है - वह कभी भी यह संकल्प-मात्र भी नहीं करते कि कोई दे तो देवें, कोई करे तो करें, नहीं। निरन्तर खुले भण्डार हैं। तो बापदादा चारों ओर के बच्चों के दातापन के संस्कार देख रहे थे। क्या देखा होगा? नम्बरवार तो है ही ना! कभी भी यह संकल्प नहीं करो - यह हो तो मैं भी यह करूं। दातापन के संस्कार वाले को सर्व तरफ से सहयोग स्वत: प्राप्त होता है। न सिर्फ आत्माओं द्वारा लेकिन प्रकृति भी समय प्रमाण सहयोगी बन जाती है। यह सूक्ष्म हिसाब है कि जो सदा दाता बनता है, उस पुण्य का फल समय पर सहयोग, समय पर सफलता उस आत्मा को सहज प्राप्त होता है इसलिए सदा दातापन के संस्कार इमर्ज रूप में रखो। पुण्य का खाता एक का 10 गुणा फल देता है। तो सारे दिन में नोट करो - संकल्प द्वारा, वाणी द्वारा, सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा पुण्य आत्मा बन पुण्य का खाता कितना जमा किया? मन्सा सेवा भी पुण्य का खाता जमा करती है। वाणी द्वारा किसी कमजोर आत्मा को खुशी में लाना, परेशान को शान की स्मृति में लाना, दिलशिकस्त आत्मा को अपनी वाणी द्वारा उमंग-उत्साह में लाना, सम्बन्ध-सम्पर्क से आत्मा को अपने श्रेष्ठ संग का रंग अनुभव कराना, इस विधि से पुण्य का खाता जमा कर सकते हो। इस जन्म में इतना पुण्य जमा करते हो जो आधाकल्प पुण्य का फल खाते हो और आधाकल्प आपके जड़ चित्र पापी आत्माओं को वायुमण्डल द्वारा पापों से मुक्त करते हैं। पतित-पावनी बन जाते हो। तो बापदादा हर एक बच्चे का जमा हुआ पुण्य का खाता देखते रहते हैं। बापदादा वर्तमान समय का बच्चों का सेवा का उमंग-उत्साह देख खुश हो रहे हैं। मैजारिटी बच्चों में सेवा का उमंग अच्छा है। सभी अपने-अपने तरफ से सेवा का प्लैन प्रैक्टिकल में ला रहे हैं। इसके लिए बापदादा दिल से मुबारक दे रहे हैं। अच्छा कर रहे हैं और अच्छा करते रहेंगे। सबसे अच्छी बात यह है - सभी का संकल्प और समय बिजी हो गया है। हर एक को यह लक्ष्य है कि चारों ओर की सेवा से अभी उल्हनें को पूरा जरूर करना है। ब्राह्मणों के दृढ़ संकल्प में बहुत शक्ति है। अगर ब्राह्मण दृढ़ संकल्प करें तो क्या नहीं हो सकता! सब हो जायेगा सिर्फ योग को ज्वाला रूप बनाओ। योग ज्वाला रूप बन जायेगा तो ज्वाला के पीछे आत्मायें स्वत: ही आ जायेंगी क्योंकि ज्वाला (लाइट) मिलने से उन्हों को रास्ता दिखाई देगा। अभी योग तो लगा रहे हैं लेकिन योग ज्वाला रूप होना है। सेवा का उमंग-उत्साह अच्छा बढ़ रहा है लेकिन योग में ज्वाला रूप अभी अण्डरलाइन करनी है। आपकी दृष्टि में ऐसी झलक आ जाए जो दृष्टि से कोई न कोई अनुभूति का अनुभव करें। बापदादा को, फारेन वालों ने यह जो सेवा की थी - कॉल ऑफ टाइम वालों की, उसकी विधि अच्छी लगी कि छोटे से संगठन को समीप लाया। ऐसे हर ज़ोन, हर सेन्टर अलग-अलग सेवा तो कर रहे हो लेकिन कोई सर्व वर्गों का संगठन बनाओ। बापदादा ने कहा था कि बिखरी हुई सेवा बहुत है, लेकिन बिखरी हुई सेवा से कुछ समीप आने वाली योग्य आत्माओं का संगठन चुनो और समय प्रति समय उस संगठन को समीप लाते रहो और उन्हों को सेवा का उमंग बढ़ाओ। बापदादा देखते हैं कि ऐसी आत्मायें हैं लेकिन अभी वह पॉवरफुल पालना, संगठित रूप में नहीं मिल रही है। अलग-अलग यथाशक्ति पालना मिल रही है, संगठन में एक दो को देखकर भी उमंग आता है। यह, ये कर सकता है, मैं भी कर सकता हूँ, मैं भी करूंगा, तो उमंग आता है। बापदादा अभी सेवा का प्रत्यक्ष संगठित रूप देखने चाहते हैं। मेहनत अच्छी कर रहे हो, हर एक अपने वर्ग की, एरिया की, ज़ोन की, सेन्टर की कर रहे हो, बापदादा खुश होते हैं। अब कुछ सामने लाओ। प्रवृत्ति वालों का भी उमंग बापदादा के पास पहुंचता है और डबल फारेनर्स का भी डबल कार्य में रहते सेवा में स्वयं के पुरुषार्थ में उमंग अच्छा है, यह देख करके भी बाप-दादा खुश है। ब्राह्मण आत्मायें वर्तमान वायुमण्डल को देख विदेश में डरते तो नहीं हैं? कल क्या होगा, कल क्या होगा... यह तो नहीं सोचते हैं? कल अच्छा होगा। अच्छा है और अच्छा ही होना है। जितनी दुनिया में हलचल होगी उतनी ही आप ब्राह्मणों की स्टेज अचल होगी। ऐसे है? डबल विदेशी हलचल है या अचल है? अचल है? हलचल में तो नहीं हैं ना! जो अचल हैं वह हाथ उठाओ। अचल हैं? कल कुछ हो जाये तो? तो भी अचल हैं ना! क्या होगा, कुछ नहीं होगा। आप ब्राह्मणों के ऊपर परमात्म छत्रछाया है। जैसे वाटरप्रूफ कितना भी वाटर हो लेकिन वाटरप्रूफ द्वारा वाटरप्रूफ हो जाते हैं। ऐसे ही कितनी भी हलचल हो लेकिन ब्राह्मण आत्मायें परमात्म छत्रछाया के अन्दर सदा प्रूफ हैं। बेफिकर बादशाह हो ना! कि थोड़ा-थोड़ा फिकर है, क्या होगा? नहीं। बेफिकर। स्वराज्य अधिकारी बन, बेफिकर बादशाह बन, अचल-अडोल सीट पर सेट रहो। सीट से नीचे नहीं उतरो। अपसेट होना अर्थात् सीट पर सेट नहीं है तो अपसेट हैं। सीट पर सेट जो है वह स्वप्न में भी अपसेट नहीं हो सकता। मातायें क्या समझती हो? सीट पर सेट होना, बैठना आता है? हलचल तो नहीं होती ना! बापदादा कम्बाइन्ड है, जब सर्वशक्तिवान आपके कम्बाइन्ड है तो आपको क्या डर है! अकेले समझेंगे तो हलचल में आयेंगे। कम्बाइन्ड रहेंगे तो कितनी भी हलचल हो लेकिन आप अचल रहेंगे। ठीक है मातायें? ठीक है ना, कम्बाइन्ड हैं ना! अकेले तो नहीं? बाप की जिम्मेवारी है, अगर आप सीट पर सेट हो तो बाप की जिम्मेवारी है, अपसेट हो तो आपकी जिम्मेवारी है। आत्माओं को सन्देश द्वारा अंचली देते रहेंगे तो दाता स्वरूप में स्थित रहेंगे, तो दातापन के पुण्य का फल शक्ति मिलती रहेगी। चलते फिरते अपने को आत्मा करावनहार है और यह कर्मेन्द्रियां करनहार कर्मचारी हैं, यह आत्मा की स्मृति का अनुभव सदा इमर्ज रूप में हो, ऐसे नहीं कि मैं तो हूँ ही आत्मा। नहीं, स्मृति में इमर्ज हो। मर्ज रूप में रहता है लेकिन इमर्ज रूप में रहने से वह नशा, खुशी और कन्ट्रोलिंग पावर रहती है। मजा भी आता है, क्यों! साक्षी हो करके कर्म कराते हो। तो बार-बार चेक करो कि करावनहार होकर कर्म करा रही हूँ? जैसे राजा अपने कर्मचारियों को आर्डर में रखते हैं, आर्डर से कराते हैं, ऐसे आत्मा करावनहार स्वरूप की स्मृति रहे तो सर्व कर्मेन्द्रियां आर्डर में रहेंगी। माया के आर्डर में नहीं रहेंगी, आपके आर्डर में रहेंगी। नहीं तो माया देखती है कि करावनहार आत्मा अलबेली हो गई है तो माया आर्डर करने लगती है। कभी संकल्प शक्ति, कभी मुख की शक्ति माया के आर्डर में चल पड़ती है इसीलिए सदा हर कर्मेन्द्रियों को अपने आर्डर में चलाओ। ऐसे नहीं कहेंगे - चाहते तो नहीं थे, लेकिन हो गया। जो चाहते हैं वही होगा। अभी से राज्य अधिकारी बनने के संस्कार भरेंगे तब ही वहाँ भी राज्य चलायेंगे। स्वराज्य अधिकारी की सीट से कभी भी नीचे नहीं आओ। अगर कर्मेन्द्रियां आर्डर पर रहेंगी तो हर शक्ति भी आपके आर्डर में रहेगी। जिस शक्ति की जिस समय आवश्यकता है उस समय जी हाजिर हो जायेगी। ऐसे नहीं काम पूरा हो जाए और आप आर्डर करो सहनशक्ति आओ, काम पूरा हो जाये फिर आवे। हर शक्ति आपके आर्डर पर जी हाजिर होगी क्योंकि यह हर शक्ति परमात्म देन है। तो परमात्म देन आपकी चीज़ हो गई। तो अपनी चीज़ को जैसे भी यूज़ करो, जब भी यूज़ करो, ऐसे यह सर्व शक्तियां आपके आर्डर पर रहेंगी, सर्व कर्मेन्द्रियां आपके आर्डर पर रहेंगी, इसको कहा जाता है स्वराज्य अधिकारी, मास्टर सर्वशक्तिवान। ऐसे है पाण्डव? मास्टर सर्व शक्तिवान भी हैं और स्वराज्य अधिकारी भी हैं। ऐसे नहीं कहना कि मुख से निकल गया, किसने आर्डर दिया जो निकल गया! देखने नहीं चाहते थे, देख लिया। करने नहीं चाहते थे, कर लिया। यह किसके आर्डर पर होता है? इसको अधिकारी कहेंगे या अधीन कहेंगे? तो अधिकारी बनो, अधीन नहीं। अच्छा। बापदादा कहते हैं जैसे अभी मधुबन में सब बहुत-बहुत खुश हो, ऐसे ही सदा खुश-आबाद रहना। रूहे गुलाब हैं। देखो, चारों ओर देखो सभी रूहे गुलाब खिले हुए गुलाब हैं। मुरझाये हुए नहीं हैं, खिले हुए गुलाब हैं। तो सदा ऐसे ही खुशनसीब और खुशनुम: चेहरे में रहना। कोई आपके चेहरे को देखे तो आपसे पूछे - क्या मिला है आपको, बड़े खुश हो! हर एक का चेहरा बाप का परिचय दे। जैसे चित्र परिचय देते हैं ऐसे आपका चेहरा बाप का परिचय दे कि बाप मिला है। अच्छा। सब ठीक हैं? विदेश वाले भी पहुंच गये हैं। अच्छा लगता है ना यहाँ? (मोहिनी बहन, न्यूयार्क) चलो हलचल सुनने से तो बच गई। अच्छा किया है, सभी इकट्ठे पहुंच गये हैं, बहुत अच्छा किया है। अच्छा - डबल फारेनर्स, डबल नशा है ना! कहो इतना नशा है जो दिल कहता है कि अगर हैं तो हम डबल विदेशी हैं। डबल नशा है, स्वराज्य अधिकारी सो विश्व अधिकारी। डबल नशा है ना! बापदादा को भी अच्छा लगता है। अगर किसी भी ग्रुप में डबल विदेशी नहीं होते हैं तो अच्छा नहीं लगता है। विश्व का पिता है ना तो विश्व के चाहिए ना! सब चाहिए। मातायें नहीं हों तो भी रौनक नहीं। पाण्डव नहीं हो तो भी रौनक कम हो जाती है। देखो जिस सेन्टर पर कोई पाण्डव नहीं हो सिर्फ मातायें हों तो अच्छा लगेगा! और सिर्फ पाण्डव हों, शक्तियां नहीं हो, तो भी सेवाकेन्द्र का श्रंगार नहीं लगता है। दोनों चाहिए। बच्चे भी चाहिए। बच्चे कहते हैं, हमारा नाम क्यों नहीं लिया। बच्चों की भी रौनक है। अच्छा - अभी एक सेकण्ड में निराकारी आत्मा बन निराकार बाप की याद में लवलीन हो जाओ। (ड्रिल) चारों ओर के सर्व स्वराज्य अधिकारी, सदा साक्षीपन की सीट पर सेट रहने वाली अचल अडोल आत्मायें, सदा दातापन की स्मृति से सर्व को ज्ञान, शक्ति, गुण देने वाले रहमदिल आत्माओं को, सदा अपने चेहरे से बाप का चित्र दिखाने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा खुशनसीब, खुशनुम: रहने वाले रूहे गुलाब, रूहानी गुलाब बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते। दादियों से:- (सेवा के साथ सब तरफ 108 घण्टे योग के भी अच्छे प्रोग्राम चल रहे हैं) इस योग ज्वाला से ही विनाश ज्वाला फोर्स में आयेगी। अभी देखो बनाते हैं प्रोग्राम, फिर सोच में पड़ जाते हैं। योग से विकर्म विनाश होंगे, पाप कर्म का बोझ भस्म होगा, सेवा से पुण्य का खाता जमा होगा। तो पुण्य का खाता जमा कर रहे हैं लेकिन पिछले जो कुछ संस्कार का बोझ है, वह भस्म योग ज्वाला से होगा। साधारण योग से नहीं। अभी क्या है, योग तो लगाते हैं लेकिन पाप भस्म होने का ज्वाला रूप नहीं है इसलिए थोड़ा टाइम खत्म होता है फिर निकल आता है इसलिए रावण को देखो, मारते हैं, जलाते हैं फिर हड्डियां भी पानी में डाल देते हैं। बिल्कुल भस्म हो जाए, पिछले संस्कार, कमजोर संस्कार बिल्कुल भस्म हो जाएं, भस्म नहीं हुए हैं। मरते हैं लेकिन भस्म नहीं होते हैं, मरने के बाद फिर जिंदा हो जाते हैं। संस्कार परिवर्तन से संसार परिवर्तन होगा। अभी संस्कारों की लीला चल रही है। संस्कार बीच-बीच में इमर्ज होते हैं ना! नामनिशान खत्म हो जाए, संस्कार परिवर्तन - यह है विशेष अण्डरलाइन की बात। संस्कार परिवर्तन नहीं हैं तो व्यर्थ संकल्प भी हैं। व्यर्थ समय भी है, व्यर्थ नुकसान भी है। होना तो है ही। संस्कार मिलन की महारास गाई हुई है। अभी रास होती है, महारास नहीं हुई है। (महारास क्यों नहीं होती हैं?) अण्डरलाइन नहीं है, दृढ़ता नहीं है। अलबेलापन भिन्न-भिन्न प्रकार का है। अच्छा! वरदान:- कर्मयोगी आत्मा का हर कर्म योगयुक्त, युक्तियुक्त होगा। अगर कोई भी कर्म युक्तियुक्त नहीं होता तो समझो योगयुक्त नहीं हैं। अगर साधारण वा व्यर्थ कर्म हो जाता है तो निरन्तर योगी नहीं कहेंगे। कर्मयोगी अर्थात् हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर बोल सदा श्रेष्ठ हो। श्रेष्ठ कर्म की निशानी है - स्वयं भी सन्तुष्ट और दूसरे भी सन्तुष्ट। ऐसी आत्मा ही निरन्तर योगी बनती है। स्लोगन:- |
05-12-2024 | प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"' | मधुबन |
“मीठे बच्चे - तुम्हें जो भी ज्ञान मिलता है, उस पर विचार सागर मंथन करो, ज्ञान मंथन से ही अमृत निकलेगा'' | |||||
प्रश्नः- | 21 जन्मों के लिए मालामाल बनने का साधन क्या है? | ||||
उत्तर:- | ज्ञान रत्न। जितना तुम इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर ज्ञान रत्न धारण करते हो उतना मालामाल बनते हो। अभी के ज्ञान रत्न वहाँ हीरे जवाहरात बन जाते हैं। जब आत्मा ज्ञान रत्न धारण करे, मुख से ज्ञान रत्न निकाले, रत्न ही सुने और सुनाये तब उनके हर्षित चेहरे से बाप का नाम बाला हो। आसुरी गुण निकलें तब मालामाल बनें धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) अपनी साहूकारी, पोज़ीशन आदि का अहंकार मिटा देना है। अविनाशी ज्ञान धन से स्वयं को मालामाल बनाना है। सर्विस में कभी भी थकना नहीं है। 2) वातावरण को अच्छा रखने के लिए मुख से सदैव रत्न निकालने हैं। दु:ख देने वाले बोल न निकलें यह ध्यान रखना है। हर्षितमुख रहना है।
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04-12-2024 | प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"' | मधुबन |
“मीठे बच्चे - सारा मदार याद पर है, याद से ही तुम मीठे बन जायेंगे, इस याद में ही माया की युद्ध चलती है'' | |||||
प्रश्नः- | इस ड्रामा में कौन सा राज़ बहुत विचार करने योग्य है? जिसे तुम बच्चे ही जानते हो? | ||||
उत्तर:- | तुम जानते हो कि ड्रामा में एक पार्ट दो बार बज न सके। सारी दुनिया में जो भी पार्ट बजता है वह एक दो से नया। तुम विचार करते हो कि सतयुग से लेकर अब तक कैसे दिन बदल जाते हैं। सारी एक्टिविटी बदल जाती है। आत्मा में 5 हजार वर्ष की एक्टिविटी का रिकॉर्ड भरा हुआ है, जो कभी बदल नहीं सकता। यह छोटी सी बात तुम बच्चों के सिवाए और किसी की बुद्धि में नहीं आ सकती। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) एक बाप की कशिश में रहकर खुशबूदार फूल बनना है। अपने स्वीट बाप को याद कर देह-अभिमान के कांटे को जला देना है। 2) इस हीरे तुल्य जन्म में अविनाशी कमाई जमा करनी है, कौड़ियों के बदले इसे गंवाना नहीं है। एक बाप से सच्चा प्यार करना है, एक के संग में रहना है।
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03-12-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - याद की यात्रा में अलबेले मत बनो, याद से ही आत्मा पावन बनेगी, बाप आये हैं सभी आत्माओं की सेवा कर उन्हें शुद्ध बनाने''
प्रश्नः-
कौन-सी स्मृति बनी रहे तो खान-पान शुद्ध हो जायेगा?
उत्तर:-
यदि स्मृति रहे कि हम बाबा के पास आये हैं सचखण्ड में जाने के लिए वा मनुष्य से देवता बनने के लिए तो खान-पान शुद्ध हो जायेगा क्योंकि देवतायें कभी अशुद्ध चीज़ नहीं खाते। जब हम सत्य बाबा के पास आये हैं सचखण्ड, पावन दुनिया का मालिक बनने तो पतित (अशुद्ध) बन नहीं सकते।
ओम् शान्ति। रूहानी बाप रूहानी बच्चों से पूछते हैं - बच्चे, तुम जब यहाँ बैठते हो तो किसको याद करते हो? अपने बेहद के बाप को। वह कहाँ है? उनको पुकारा जाता है ना - हे पतित-पावन! आजकल संन्यासी भी कहते रहते हैं पतित-पावन सीताराम अर्थात् पतितों को पावन बनाने वाले राम आओ। यह तो बच्चे समझते हैं पावन दुनिया सतयुग को, पतित दुनिया कलियुग को कहा जाता है। अभी तुम कहाँ बैठे हो? कलियुग के अन्त में इसलिए पुकारते हैं बाबा आकर हमको पावन बनाओ। हम कौन हैं? आत्मा। आत्मा को ही पवित्र बनना है। आत्मा पवित्र बनती है तो शरीर भी पवित्र मिलता है। आत्मा के पतित बनने से शरीर भी पतित मिलता है। यह शरीर तो मिट्टी का पुतला है। आत्मा तो अविनाशी है। आत्मा इन आरगन्स द्वारा कहती है, पुकारती है - हम बहुत पतित बन गये हैं, हमको आकर पावन बनाओ। बाप पावन बनाते हैं। 5 विकारों रूपी रावण पतित बनाते हैं। बाप ने अभी स्मृति दिलाई है - हम पावन थे फिर ऐसे 84 जन्म लेते-लेते अभी अन्तिम जन्म में हैं। यह जो मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ है, बाप कहते हैं मैं इनका बीजरूप हूँ, मुझे बुलाते हैं - हे परमपिता परमात्मा, ओ गाड फॉदर, लिबरेट मी। हर एक अपने लिए कहते हैं मुझे छुड़ाओ भी और पण्डा बनकर शान्तिधाम घर में ले चलो। संन्यासी आदि भी कहते हैं स्थाई शान्ति कैसे मिले? अब शान्तिधाम तो है घर। जहाँ से आत्मायें पार्ट बजाने आती हैं। वहाँ सिर्फ आत्मायें ही हैं शरीर नहीं है। आत्मायें नंगी अर्थात् शरीर बिगर रहती हैं। नंगे का अर्थ यह नहीं कि कपड़े पहनने बिगर रहना। नहीं, शरीर बिगर आत्मायें नंगी (अशरीरी) रहती हैं। बाप कहते हैं - बच्चे, तुम आत्मायें वहाँ मूलवतन में बिगर शरीर रहती हो, उसे निराकारी दुनिया कहा जाता है।
बच्चों को सीढ़ी पर समझाया गया है - कैसे हम सीढ़ी नीचे उतरते आये हैं। पूरे 84 जन्म लगे हैं मैक्सीमम। फिर कोई एक जन्म भी लेते हैं। आत्मायें ऊपर से आती ही रहती हैं। अभी बाप कहते हैं मैं आया हूँ पावन बनाने। शिवबाबा, ब्रह्मा द्वारा तुम्हें पढ़ाते हैं। शिवबाबा है आत्माओं का बाप और ब्रह्मा को आदि देव कहते हैं। इस दादा में बाप कैसे आते हैं, यह तुम बच्चे ही जानते हो। मुझे बुलाते भी हैं - हे पतित-पावन आओ। आत्माओं ने इस शरीर द्वारा बुलाया है। मुख्य आत्मा है ना। यह है ही दु:खधाम। यहाँ कलियुग में देखो बैठे-बैठे अचानक मृत्यु हो जाती है, वहाँ ऐसे कोई बीमार ही नहीं होते। नाम ही है स्वर्ग। कितना अच्छा नाम है। कहने से दिल खुश हो जाता है। क्रिश्चियन भी कहते हैं क्राइस्ट से 3 हज़ार वर्ष पहले पैराडाइज़ था। यहाँ भारतवासियों को तो कुछ भी पता नहीं है क्योंकि उन्होंने सुख बहुत देखा है तो दु:ख भी बहुत देख रहे हैं। तमोप्रधान बने हैं। 84 जन्म भी इन्हों के हैं। आधाकल्प बाद फिर और धर्म वाले आते हैं। अभी तुम समझते हो आधाकल्प देवी-देवतायें थे तो और कोई धर्म नहीं था। फिर त्रेता में जब राम हुआ तो भी इस्लामी-बौद्धी नहीं थे। मनुष्य तो बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं। कह देते दुनिया की आयु लाखों वर्ष है, इसलिए मनुष्य मूँझते हैं कि कलियुग अजुन छोटा बच्चा है। तुम अभी समझते हो कलियुग पूरा हो अभी सतयुग आयेगा इसलिए तुम आये हो बाप से स्वर्ग का वर्सा लेने। तुम सब स्वर्गवासी थे। बाप आते ही हैं स्वर्ग स्थापन करने। तुम ही स्वर्ग में आते हो, बाकी सब शान्तिधाम घर चले जाते हैं। वह है स्वीट होम, आत्मायें वहाँ निवास करती हैं। फिर यहाँ आकर पार्टधारी बनते हैं। शरीर बिगर तो आत्मा बोल भी न सके। वहाँ शरीर न होने कारण आत्मायें शान्ति में रहती हैं। फिर आधा-कल्प हैं देवी-देवतायें, सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी। फिर द्वापर-कलियुग में होते हैं मनुष्य। देवताओं का राज्य था फिर अब वह कहाँ गये? किसको पता नहीं। यह नॉलेज अभी तुमको बाप से मिलती है। और कोई मनुष्य में यह नॉलेज होती नहीं। बाप ही आकर मनुष्यों को यह नॉलेज देते हैं, जिससे ही मनुष्य से देवता बनते हैं। तुम यहाँ आये ही हो मनुष्य से देवता बनने के लिए। देवताओं का खान-पान अशुद्ध नहीं होता, वे कभी बीड़ी आदि पीते नहीं। यहाँ के पतित मनुष्यों की बात मत पूछो - क्या-क्या खाते हैं! अब बाप समझाते हैं यह भारत पहले सचखण्ड था। जरूर सच्चे बाप ने स्थापन किया होगा। बाप को ही ट्रूथ कहा जाता है। बाप ही कहते हैं मैं ही इस भारत को सचखण्ड बनाता हूँ। तुम सच्चे देवतायें कैसे बन सकते हो, वह भी तुमको सिखलाता हूँ। कितने बच्चे यहाँ आते हैं इसलिए यह मकान आदि बनवाने पड़ते हैं। अन्त तक भी बनते रहेंगे, बहुत बनेंगे। मकान खरीद भी करते हैं। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा कार्य करते हैं। ब्रह्मा हो गया सांवरा क्योंकि यह बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है ना। यह फिर गोरा बनेगा। कृष्ण का भी चित्र गोरा और सांवरा है ना। म्युज़ियम में बड़े-बड़े अच्छे चित्र हैं, जिस पर तुम किसको अच्छी रीति समझा सकते हो। यहाँ बाबा म्युजियम नहीं बनवाते हैं इनको कहा जाता है टॉवर आफ साइलेन्स। तुम जानते हो हम शान्तिधाम अपने घर जाते हैं। हम वहाँ के रहने वाले हैं फिर यहाँ आकर शरीर ले पार्ट बजाते हैं। बच्चों को पहले-पहले यह निश्चय होना चाहिए कि यह कोई साधू-सन्त नहीं पढ़ाते हैं। यह (दादा) तो सिंध का रहने वाला था परन्तु इसमें जो प्रवेश कर बोलते हैं - वह है ज्ञान का सागर। उनको कोई जानते ही नहीं। कहते भी हैं गॉड फादर। परन्तु कह देते उनका नाम-रूप है ही नहीं। वह निराकार है, उनका कोई आकार नहीं है। फिर कह देते वह सर्वव्यापी है। अरे, परमात्मा कहाँ है? कहेंगे वह सर्वव्यापी है, सबके अन्दर है। अरे, हर एक के अन्दर आत्मा बैठी है, सब भाई-भाई हैं ना, फिर घट-घट में परमात्मा कहाँ से आया? ऐसे नहीं कहेंगे परमात्मा भी है और आत्मा भी है। परमात्मा बाप को बुलाते हैं, बाबा आकर हम पतितों को पावन बनाओ। मुझे तुम बुलाते हो यह धंधा, यह सेवा करने लिए। हम सभी को आकर शुद्ध बनाओ। पतित दुनिया में हमको निमंत्रण देते हो, कहते हो बाबा हम पतित हैं। बाप तो पावन दुनिया देखते ही नहीं। पतित दुनिया में ही तुम्हारी सेवा करने के लिए आये हैं। अब यह रावण राज्य विनाश हो जायेगा। बाकी तुम जो राजयोग सीखते हो वह जाकर राजाओं का राजा बनते हो। तुमको अनगिनत बार पढ़ाया है फिर 5 हज़ार वर्ष बाद तुमको ही पढ़ायेंगे। सतयुग-त्रेता की राजधानी अब स्थापन हो रही है। पहले है ब्राह्मण कुल। प्रजापिता ब्रह्मा गाया जाता है ना, जिसको एडम आदि देव कहते हैं। यह कोई को पता नहीं है। बहुत हैं जो यहाँ आकर सुनकर फिर माया के वश हो जाते हैं। पुण्य आत्मा बनते-बनते पाप आत्मा बन पड़ते हैं। माया बड़ी जबरदस्त है। सबको पाप आत्मा बना देती है। यहाँ कोई भी पवित्र आत्मा, पुण्य आत्मा है नहीं। पवित्र आत्मायें देवी-देवता ही थे, जब सभी पतित बन जाते हैं तब बाप को बुलाते हैं। अभी यह है रावण राज्य पतित दुनिया, इनको कहा जाता है कांटों का जंगल। सतयुग को कहा जाता है गार्डन ऑफ फ्लावर्स। मुगल गार्डन में कितने फर्स्टक्लास अच्छे-अच्छे फूल होते हैं। अक के भी फूल मिलेंगे परन्तु इसका अर्थ कोई भी समझते नहीं हैं, शिव के ऊपर अक क्यों चढ़ाते हैं? यह भी बाप बैठ समझाते हैं। मैं जब पढ़ाता हूँ तो उनमें कोई फर्स्टक्लास मोतिये, कोई रतन ज्योत, कोई फिर अक के भी हैं। नम्बरवार तो हैं ना। तो इसको कहा ही जाता है दु:खधाम, मृत्युलोक। सतयुग है अमरलोक। यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। शास्त्र तो इस दादा ने पढ़े हैं, बाप तो शास्त्र नहीं पढ़ायेंगे। बाप तो खुद सद्गति दाता है। करके गीता को रेफर करते हैं। सर्वशास्त्रमई शिरोमणी गीता भगवान ने गाई है परन्तु भगवान किसको कहा जाता है, यह भारतवासियों को पता नहीं। बाप कहते हैं मैं निष्काम सेवा करता हूँ, तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ, मैं नहीं बनता हूँ। स्वर्ग में तुम मुझे याद नहीं करते हो। दु:ख में सिमरण सब करें, सुख में करे न कोय। इनको दु:ख और सुख का खेल कहा जाता है। स्वर्ग में और कोई दूसरा धर्म होता ही नहीं। वह सभी आते ही हैं बाद में। तुम जानते हो अभी इस पुरानी दुनिया का विनाश हो जायेगा, नैचुरल कैलेमिटीज़ तूफान आयेंगे जोर से। सब खत्म हो जायेंगे।
तो बाप अभी आकर बेसमझदार से समझदार बनाते हैं। बाप ने कितना धन माल दिया था, सब कहाँ गया? अभी कितने इनसालवेन्ट बन गये हैं। भारत जो सोने की चिड़िया था वह अब क्या बन पड़ा है? अब फिर पतित-पावन बाप आये हुए हैं राजयोग सिखला रहे हैं। वह है हठयोग, यह है राजयोग। यह राजयोग दोनों के लिए है, वह हठयोग सिर्फ पुरूष ही सीखते हैं। अब बाप कहते हैं पुरूषार्थ करो, विश्व का मालिक बनकर दिखाओ। अब इस पुरानी दुनिया का विनाश तो होना ही है बाकी थोड़ा समय है, यह लड़ाई अन्तिम लड़ाई है। यह लड़ाई शुरू होगी तो रूक नहीं सकती। यह लड़ाई शुरू ही तब होगी जब तुम कर्मातीत अवस्था को पायेंगे और स्वर्ग में जाने के लायक बन जायेंगे। बाप फिर भी कहते हैं याद की यात्रा में अलबेले नहीं बनो, इसमें ही माया विघ्न डालती है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप द्वारा अच्छी रीति पढ़कर फर्स्टक्लास फूल बनना है, कांटों के इस जंगल को फूलों का बगीचा बनाने में बाप को पूरी मदद करनी है।
2) कर्मातीत अवस्था को प्राप्त करने वा स्वर्ग में ऊंच पद का अधिकार प्राप्त करने के लिए याद की यात्रा में तत्पर रहना है, अलबेला नहीं बनना है।
वरदान:-
अपने मस्तक पर सदा बाप की दुआओं का हाथ अनुभव करने वाले मास्टर विघ्न-विनाशक भव
गणेश को विघ्न विनाशक कहते हैं। विघ्न विनाशक वही बनते जिनमें सर्व शक्तियां हैं। सर्वशक्तियों को समय प्रमाण कार्य में लगाओ तो विघ्न ठहर नहीं सकते। कितने भी रूप से माया आये लेकिन आप नॉलेजफुल बनो। नॉलेजफुल आत्मा कभी माया से हार खा नहीं सकती। जब मस्तक पर बापदादा की दुआओं का हाथ है तो विजय का तिलक लगा हुआ है। परमात्म हाथ और साथ विघ्न-विनाशक बना देता है।
स्लोगन:-
स्वयं में गुणों को धारण कर दूसरों को गुणदान करने वाले ही गुणमूर्त हैं।
01-12-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 18.01.2003 "बापदादा" मधुबन
ब्राह्मण जन्म की स्मृतियों द्वारा समर्थ बन सर्व को समर्थ बनाओ
आज चारों ओर के सर्व स्नेही बच्चों के स्नेह के मीठे-मीठे याद के भिन्न-भिन्न बोल, स्नेह के मोती की मालायें बापदादा के पास अमृतवेले से भी पहले पहुंच गई। बच्चों का स्नेह बापदादा को भी स्नेह के सागर में समा लेता है। बापदादा ने देखा हर एक बच्चे में स्नेह की शक्ति अटूट है। यह स्नेह की शक्ति हर बच्चे को सहजयोगी बना रही है। स्नेह के आधार पर सर्व आकर्षणों से उपराम हो आगे से आगे बढ़ रहे हैं। ऐसा एक बच्चा भी नहीं देखा जिसको बापदादा द्वारा या विशेष आत्माओं द्वारा न्यारे और प्यारे स्नेह का अनुभव न हो। हर एक ब्राह्मण आत्मा का ब्राह्मण जीवन का आदिकाल स्नेह की शक्ति द्वारा ही हुआ है। ब्राह्मण जन्म की यह स्नेह की शक्ति वरदान बन आगे बढ़ा रही है। तो आज का दिन विशेष बाप और बच्चों के स्नेह का दिन है। हर एक ने अपने दिल में स्नेह के मोतियों की बहुत-बहुत मालायें बापदादा को पहनाई। और शक्तियां आज के दिन मर्ज हैं लेकिन स्नेह की शक्ति इमर्ज है। बापदादा भी बच्चों के स्नेह के सागर में लवलीन है।
आज के दिन को स्मृति दिवस कहते हो। स्मृति दिवस सिर्फ ब्रह्मा बाप के स्मृति का दिवस नहीं है लेकिन बापदादा कहते हैं आज और सदा यह याद रहे कि बापदादा ने ब्राह्मण जन्म लेते ही आदि से अब तक क्या-क्या स्मृतियां दिलाई हैं। वह स्मृतियों की माला याद करो, बहुत बड़ी माला बन जायेगी। सबसे पहली स्मृति सबको क्या मिली? पहला पाठ याद है ना! मैं कौन! इस स्मृति ने ही नया जन्म दिया, वृत्ति दृष्टि स्मृति परिवर्तन कर दी है। ऐसी स्मृतियां याद आते ही रूहानी खुशी की झलक नयनों में, मुख में आ ही जाती है। आप स्मृतियां याद करते और भक्त माला सिमरण करते हैं। एक भी स्मृति अमृतवेले से कर्मयोगी बनने समय भी बार-बार याद रहे तो स्मृति समर्थ स्वरूप बना देती है क्योंकि जैसी स्मृति वैसी ही समर्थी स्वत: ही आती है इसलिए आज के दिन को स्मृति दिन साथ-साथ समर्थ दिन कहते हैं। ब्रह्मा बाप सामने आते ही, बाप की दृष्टि पड़ते ही आत्माओं में समर्थी आ जाती है। सब अनुभवी हैं। सभी अनुभवी हैं ना! चाहे साकार रूप में देखा, चाहे अव्यक्त रूप की पालना से पलते अव्यक्त स्थिति का अनुभव करते हो, सेकण्ड में दिल से बापदादा कहा और समर्थी स्वत: ही आ जाती है इसलिए ओ समर्थ आत्मायें अब अन्य आत्माओं को अपनी समर्थी से समर्थ बनाओ। उमंग है ना! है उमंग, असमर्थ को समर्थ बनाना है ना! बापदादा ने देखा कि चारों ओर कमजोर आत्माओं को समर्थ बनाने का उमंग अच्छा है।
शिव रात्रि के प्रोग्राम धूमधाम से बना रहे हैं। सबको उमंग है ना! जिसको उमंग है बस इस शिवरात्रि में कमाल करेंगे, वह हाथ उठाओ। ऐसी कमाल जो धमाल खत्म हो जाए। जय-जयकार हो जाये वाह! वाह समर्थ आत्मायें वाह! सभी ज़ोन ने प्रोग्राम बनाया है ना! पंजाब ने भी बनाया है ना! अच्छा है। भटकती हुई आत्मायें, प्यासी आत्मायें, अशान्त आत्मायें, ऐसी आत्माओं को अंचली तो दे दो। फिर भी आपके भाई-बहिने हैं। तो अपने भाईयों के ऊपर, अपनी बहिनों के ऊपर रहम आता है ना! देखो, आजकल परमात्मा को आपदा के समय याद करते लेकिन शक्तियों को, देवताओं में भी गणेश है, हनुमान है और भी देवताओं को ज्यादा याद करते हैं, तो वह कौन हैं? आप ही हो ना! आपको रोज़ याद करते हैं। पुकार रहे हैं - हे कृपालु, दयालु रहम करो, कृपा करो। जरा सी एक सुख शान्ति की बूंद दे दो। आप द्वारा एक बूँद के प्यासी हैं। तो दु:खियों का, प्यासी आत्माओं का आवाज हे शक्तियां, हे देव नहीं पहुंच रहा है! पहुंच रहा है ना? बापदादा जब पुकार सुनते हैं तो शक्तियों को और देवों को याद करते हैं। तो अच्छा प्रोग्राम दादी ने बनाया है, बाबा को पसन्द है। स्मृति दिवस तो सदा ही है लेकिन फिर भी आज का दिन स्मृति द्वारा सर्व समर्थियां विशेष प्राप्त की, अब कल से शिवरात्रि तक बापदादा चारों ओर के बच्चों को कहते कि यह विशेष दिन यही लक्ष्य रखो कि ज्यादा से ज्यादा आत्माओं को मन्सा द्वारा, वाणी द्वारा वा सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा किसी भी विधि से सन्देश रूपी अंचली जरूर देना है। अपना उल्हना उतार दो। बच्चे सोचते हैं अभी विनाश की डेट तो दिखाई नहीं देती है, तो कभी भी उल्हना पूरा कर लेंगे लेकिन नहीं अगर अभी से उल्हना पूरा नहीं करेंगे तो यह भी उल्हना मिलेगा कि आपने पहले क्यों नहीं बताया। हम भी कुछ तो बना देते, फिर तो सिर्फ अहो प्रभू कहेंगे इसलिए उन्हें भी कुछ-कुछ तो वर्से की अंचली लेने दो। उन्हों को भी कुछ समय दो। एक बूंद से भी प्यास तो बुझाओ, प्यासे के लिए एक बूंद भी बहुत महत्व वाली होती है। तो यही प्रोग्राम है ना कि कल से लेके बापदादा भी हरी झण्डी नहीं, नगाड़ा बजा रहे हैं कि आत्माओं को, हे तृप्त आत्मायें सन्देश दो, सन्देश दो। कम से कम शिवरात्रि पर बाप के बर्थ डे का मुख तो मीठा करें कि हाँ हमें सन्देश मिल गया। यह दिलखुश मिठाई सभी को सुनाओ, खिलाओ। साधारण शिवरात्रि नहीं मनाना, कुछ कमाल करके दिखाना। उमंग है? पहली लाइन को है? बहुत धूम मचाओ। कम से कम यह तो समझें कि शिवरात्रि का इतना बड़ा महत्व है। हमारे बाप का जन्म दिन है, सुनके खुशी तो मनायें।
बापदादा ने देखा कि अमृतवेले मैजारिटी का याद और ईश्वरीय प्राप्तियों का नशा बहुत अच्छा रहता है। लेकिन कर्म योगी की स्टेज में जो अमृतवेले का नशा है उससे अन्तर पड़ जाता है। कारण क्या है? कर्म करते, सोल कॉन्सेस और कर्म कॉन्सेस दोनों रहता है। इसकी विधि है कर्म करते मैं आत्मा, कौन सी आत्मा, वह तो जानते ही हो, जो भिन्न-भिन्न आत्मा के स्वमान मिले हुए हैं, ऐसी आत्मा करावनहार होकर इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराने वाली हूँ, यह कर्मेन्द्रियाँ कर्मचारी हैं लेकिन कर्मचारियों से कर्म कराने वाली मैं करावनहार हूँ, न्यारी हूँ। क्या लौकिक में भी डायरेक्टर अपने साथियों से, निमित्त सेवा करने वालों से सेवा कराते, डायरेक्शन देते, ड्यूटी बजाते भूल जाता है कि मैं डायरेक्टर हूँ? तो अपने को करावनहार शक्तिशाली आत्मा हूँ, यह समझकर कार्य कराओ। यह आत्मा और शरीर, वह करनहार है वह करावनहार है, यह स्मृति मर्ज हो जाती है। आप सबको, पुराने बच्चों को मालूम है कि ब्रह्मा बाप ने शुरू शुरू में क्या अभ्यास किया? एक डायरी देखी थी ना। सारी डायरी में एक ही शब्द - मैं भी आत्मा, जसोदा भी आत्मा, यह बच्चे भी आत्मा हैं, आत्मा है, आत्मा है.... यह फाउण्डेशन सदा का अभ्यास किया। तो यह पहला पाठ मैं कौन? इसका बार-बार अभ्यास चाहिए। चेकिंग चाहिए, ऐसे नहीं मैं तो हूँ ही आत्मा। अनुभव करे कि मैं आत्मा करावनहार बन कर्म करा रही हूँ। करनहार अलग है, करावनहार अलग है। ब्रह्मा बाप का दूसरा अनुभव भी सुना है कि यह कर्मेन्द्रियाँ, कर्मचारी हैं। तो रोज़ रात की कचहरी सुनी है ना! तो मालिक बन इन कर्मेन्द्रियों रूपी कर्मचारियों से हाल-चाल पूछा है ना! तो जैसे ब्रह्मा बाप ने यह अभ्यास फाउण्डेशन बहुत पक्का किया, इसलिए जो बच्चे लास्ट में भी साथ रहे उन्होंने क्या अनुभव किया? कि बाप कार्य करते भी शरीर में होते हुए भी अशरीरी स्थिति में चलते फिरते अनुभव होता रहा। चाहे कर्म का हिसाब भी चुक्तू करना पड़ा लेकिन साक्षी हो, न स्वयं कर्म के हिसाब के वश रहे, न औरों को कर्म के हिसाब-किताब चुक्तू होने का अनुभव कराया। आपको मालूम पड़ा कि ब्रह्मा बाप अव्यक्त हो रहा है, नहीं मालूम पड़ा ना! तो इतना न्यारा, साक्षी, अशरीरी अर्थात् कर्मातीत स्टेज बहुतकाल से अभ्यास की तब अन्त में भी वही स्वरूप अनुभव हुआ। यह बहुतकाल का अभ्यास काम में आता है। ऐसे नहीं सोचो कि अन्त में देहभान छोड़ देंगे, नहीं। बहुतकाल का अशरीरीपन का, देह से न्यारा करावनहार स्थिति का अनुभव चाहिए। अन्तकाल चाहे जवान है, चाहे बूढ़ा है, चाहे तन्दरूस्त है, चाहे बीमार है, किसका भी कभी भी आ सकता है इसलिए बहुतकाल साक्षीपन के अभ्यास पर अटेन्शन दो। चाहे कितनी भी प्राकृतिक आपदायें आयेंगी लेकिन यह अशरीरीपन की स्टेज आपको सहज न्यारा और बाप का प्यारा बना देगी इसलिए बहुतकाल शब्द को बापदादा अण्डरलाइन करा रहे हैं। क्या भी हो, सारे दिन में साक्षीपन की स्टेज का, करावनहार की स्टेज का, अशरीरीपन की स्टेज का अनुभव बार-बार करो, तब अन्त मते फरिश्ता सो देवता निश्चित है। बाप समान बनना है तो बाप निराकार और फरिश्ता है, ब्रह्मा बाप समान बनना अर्थात् फरिश्ता स्टेज में रहना। जैसे फरिश्ता रूप साकार रूप में देखा, बात सुनते, बात करते, कारोबार करते अनुभव किया कि जैसे बाप शरीर में होते न्यारे हैं। कार्य को छोड़कर अशरीरी बनना, यह तो थोड़ा समय हो सकता है लेकिन कार्य करते, समय निकाल अशरीरी, पावरफुल स्टेज का अनुभव करते रहो। आप सब फरिश्ते हो, बाप द्वारा इस ब्राह्मण जीवन का आधार ले सन्देश देने के लिए साकार में कार्य कर रहे हो। फरिश्ता अर्थात् देह में रहते देह से न्यारा और यह एक्जैम्पुल ब्रह्मा बाप को देखा है, असम्भव नहीं है। देखा अनुभव किया। जो भी निमित्त हैं, चाहे अभी विस्तार ज्यादा है लेकिन जितनी ब्रह्मा बाप की नई नॉलेज, नई जीवन, नई दुनिया बनाने की जिम्मेवारी थी, उतनी अभी किसकी भी नहीं है। तो सबका लक्ष्य है ब्रह्मा बाप समान बनना अर्थात् फरिश्ता बनना। शिव बाप समान बनना अर्थात् निराकार स्थिति में स्थित होना। मुश्किल है क्या? बाप और दादा से प्यार है ना! तो जिससे प्यार है उस जैसा बनना, जब संकल्प भी है - बाप समान बनना ही है, तो कोई मुश्किल नहीं। सिर्फ बार-बार अटेन्शन। साधारण जीवन नहीं। साधारण जीवन जीने वाले बहुत हैं। बड़े-बड़े कार्य करने वाले बहुत हैं। लेकिन आप जैसा कार्य, आप ब्राह्मण आत्माओं के सिवाए और कोई नहीं कर सकता है।
तो आज स्मृति दिवस पर बापदादा समानता में समीप आओ, समीप आओ, समीप आओ का वरदान दे रहे हैं। सभी हद के किनारे, चाहे संकल्प, चाहे बोल, चाहे कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क कोई भी हद का किनारा, अपने मन की नईया को इन हद के किनारों से मुक्त कर दो। अभी से जीवन में रहते मुक्त ऐसे जीवनमुक्ति का अलौकिक अनुभव बहुतकाल से करो। अच्छा।
चारों ओर के बच्चों के पत्र बहुत मिले हैं और मधुबन वालों की क्रोधमुक्त की रिपोर्ट, समाचार भी बापदादा के पास पहुंचा है। बापदादा हिम्मत पर खुश है, और आगे के लिए सदा मुक्त रहने के लिए सहनशक्ति का कवच पहने रखना, तो कितना भी कोई प्रयत्न करेगा लेकिन आप सदा सेफ रहेंगे।
ऐसे सर्व दृढ़ संकल्पधारी, सदा स्मृति स्वरूप आत्माओं को, सदा सर्व समर्थियों को समय पर कार्य में लाने वाले विशेष आत्माओं को, सदा सर्व आत्माओं के रहमदिल आत्माओं को, सदा बापदादा समान बनने के संकल्प को साकार रूप में लाने वाले ऐसे बहुत-बहुत-बहुत प्यारे और न्यारे बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
डबल फारेनर्स:- डबल फारेनर्स को डबल नशा है। क्यों डबल नशा है? क्योंकि समझते हैं कि हम भी जैसे बाप दूरदेश के हैं ना, तो हम भी दूरदेश से आये हैं। बापदादा ने डबल विदेशी बच्चों की एक विशेषता देखी है कि दीप से दीप जगाते हुए अनेक देशों में बापदादा के जगे हुए दीपकों की दीवाली मना दी है। डबल विदेशियों को सन्देश देने का शौक अच्छा है। हर ग्रुप में बापदादा ने देखा 35-40 देशों के होते हैं। मुबारक हो। सदा स्वयं भी उड़ते रहो और फरिश्ते बनकरके उड़ते-उड़ते सन्देश देते रहो। अच्छा है, आप 35 देश वालों को बापदादा नहीं देख रहा है और भी देश वालों को आपके साथ देख रहे हैं। तो नम्बरवन बाप समान बनने वाले हो ना! नम्बरवन कि नम्बरवार बनने वाले हो? नम्बरवन? नम्बरवार नहीं? नम्बरवन बनना अर्थात् हर समय विन करने वाले। जो विन करते हैं वह वन होते हैं। तो ऐसे हो ना? बहुत अच्छा। विजयी हैं और सदा विजयी रहने वाले। अच्छा और सभी को, जहाँ जहाँ जाओ वहाँ यह स्मृति दिलाना कि सभी डबल फारेनर्स को वन नम्बर बनना है।
अच्छा - बापदादा सभी माताओं को गऊपाल की प्यारी माताओं को बहुत-बहुत दिल से यादप्यार दे रहे हैं और पाण्डव चाहे यूथ हो, चाहे प्रवृत्ति वाले हो, पाण्डव सदा पाण्डवपति के साथी रहे हैं, ऐसे साथी पाण्डवों को भी बापदादा बहुत-बहुत यादप्यार दे रहे हैं।
दादी जी से:- आज के दिन क्या याद आता है? विल पॉवर्स मिली ना! विल पॉवर्स का वरदान है। बहुत अच्छा पार्ट बजाया है, इसकी मुबारक है। सभी की दुआयें आपको बहुत हैं। आपको देख करके ही सभी खुश हो जाते हैं, बोलो या नहीं बोलो। आपको कुछ होता है ना तो सब ऐसे समझते हैं हमको हो रहा है। इतना प्यार है। सभी का है। (हमारा भी सबसे बहुत प्यार है) प्यार तो है बहुत सभी से। यह प्यार ही सभी को चला रहा है। धारणा कम हो ज्यादा हो, लेकिन प्यार चला रहा है। बहुत अच्छा।
ईशू दादी से:- इसने भी हिसाब चुक्तू कर लिया। कोई बात नहीं। इसका सहज पुरुषार्थ, सहज हिसाब चुक्तू। सहज ही हो गया, सोते सोते। आराम मिला विष्णु के मुआफिक। अच्छा। फिर भी साकार से अभी तक यज्ञ रक्षक बने हैं। तो यज्ञ रक्षक बनने की दुआयें बहुत होती हैं।
सभी दादियां बापदादा के बहुत-बहुत समीप हैं। समीप रत्न हैं और सबको दादियों का मूल्य है। संगठन भी अच्छा है। आप दादियों के संगठन ने इतने वर्ष यज्ञ की रक्षा की है और करते रहेंगे। यह एकता सभी सफलता का आधार है। (बाबा बीच में है) बाप को बीच में रखा है, यह अटेन्शन बहुत अच्छा दिया है। अच्छा। सभी ठीक हैं।
वरदान:-
सर्व सम्बन्धों से एक बाप को अपना साथी बनाने वाले सहज पुरुषार्थी भव
बाप स्वयं सर्व सम्बन्धों से साथ निभाने की ऑफर करते हैं। जैसा समय वैसे सम्बन्ध से बाप के साथ रहो और साथी बनाओ। जहाँ सदा साथ भी है और साथी भी है वहाँ कोई मुश्किल हो नहीं सकता। जब कभी अपने को अकेला अनुभव करो तो उस समय बाप के बिन्दू रूप को याद नहीं करो, प्राप्तियों की लिस्ट सामने लाओ, भिन्न-भिन्न समय के रमणीक अनुभव की कहानियाँ स्मृति में लाओ, सर्व संबंधों के रस का अनुभव करो तो मेहनत समाप्त हो जायेगी और सहज पुरुषार्थी बन जायेंगे।
स्लोगन:-
बहुरूपी बन माया के बहुरूपों को परख लो तो मास्टर मायापति बन जायेंगे।
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01-12-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 18.01.2003 "बापदादा" मधुबन
ब्राह्मण जन्म की स्मृतियों द्वारा समर्थ बन सर्व को समर्थ बनाओ
आज चारों ओर के सर्व स्नेही बच्चों के स्नेह के मीठे-मीठे याद के भिन्न-भिन्न बोल, स्नेह के मोती की मालायें बापदादा के पास अमृतवेले से भी पहले पहुंच गई। बच्चों का स्नेह बापदादा को भी स्नेह के सागर में समा लेता है। बापदादा ने देखा हर एक बच्चे में स्नेह की शक्ति अटूट है। यह स्नेह की शक्ति हर बच्चे को सहजयोगी बना रही है। स्नेह के आधार पर सर्व आकर्षणों से उपराम हो आगे से आगे बढ़ रहे हैं। ऐसा एक बच्चा भी नहीं देखा जिसको बापदादा द्वारा या विशेष आत्माओं द्वारा न्यारे और प्यारे स्नेह का अनुभव न हो। हर एक ब्राह्मण आत्मा का ब्राह्मण जीवन का आदिकाल स्नेह की शक्ति द्वारा ही हुआ है। ब्राह्मण जन्म की यह स्नेह की शक्ति वरदान बन आगे बढ़ा रही है। तो आज का दिन विशेष बाप और बच्चों के स्नेह का दिन है। हर एक ने अपने दिल में स्नेह के मोतियों की बहुत-बहुत मालायें बापदादा को पहनाई। और शक्तियां आज के दिन मर्ज हैं लेकिन स्नेह की शक्ति इमर्ज है। बापदादा भी बच्चों के स्नेह के सागर में लवलीन है।
आज के दिन को स्मृति दिवस कहते हो। स्मृति दिवस सिर्फ ब्रह्मा बाप के स्मृति का दिवस नहीं है लेकिन बापदादा कहते हैं आज और सदा यह याद रहे कि बापदादा ने ब्राह्मण जन्म लेते ही आदि से अब तक क्या-क्या स्मृतियां दिलाई हैं। वह स्मृतियों की माला याद करो, बहुत बड़ी माला बन जायेगी। सबसे पहली स्मृति सबको क्या मिली? पहला पाठ याद है ना! मैं कौन! इस स्मृति ने ही नया जन्म दिया, वृत्ति दृष्टि स्मृति परिवर्तन कर दी है। ऐसी स्मृतियां याद आते ही रूहानी खुशी की झलक नयनों में, मुख में आ ही जाती है। आप स्मृतियां याद करते और भक्त माला सिमरण करते हैं। एक भी स्मृति अमृतवेले से कर्मयोगी बनने समय भी बार-बार याद रहे तो स्मृति समर्थ स्वरूप बना देती है क्योंकि जैसी स्मृति वैसी ही समर्थी स्वत: ही आती है इसलिए आज के दिन को स्मृति दिन साथ-साथ समर्थ दिन कहते हैं। ब्रह्मा बाप सामने आते ही, बाप की दृष्टि पड़ते ही आत्माओं में समर्थी आ जाती है। सब अनुभवी हैं। सभी अनुभवी हैं ना! चाहे साकार रूप में देखा, चाहे अव्यक्त रूप की पालना से पलते अव्यक्त स्थिति का अनुभव करते हो, सेकण्ड में दिल से बापदादा कहा और समर्थी स्वत: ही आ जाती है इसलिए ओ समर्थ आत्मायें अब अन्य आत्माओं को अपनी समर्थी से समर्थ बनाओ। उमंग है ना! है उमंग, असमर्थ को समर्थ बनाना है ना! बापदादा ने देखा कि चारों ओर कमजोर आत्माओं को समर्थ बनाने का उमंग अच्छा है।
शिव रात्रि के प्रोग्राम धूमधाम से बना रहे हैं। सबको उमंग है ना! जिसको उमंग है बस इस शिवरात्रि में कमाल करेंगे, वह हाथ उठाओ। ऐसी कमाल जो धमाल खत्म हो जाए। जय-जयकार हो जाये वाह! वाह समर्थ आत्मायें वाह! सभी ज़ोन ने प्रोग्राम बनाया है ना! पंजाब ने भी बनाया है ना! अच्छा है। भटकती हुई आत्मायें, प्यासी आत्मायें, अशान्त आत्मायें, ऐसी आत्माओं को अंचली तो दे दो। फिर भी आपके भाई-बहिने हैं। तो अपने भाईयों के ऊपर, अपनी बहिनों के ऊपर रहम आता है ना! देखो, आजकल परमात्मा को आपदा के समय याद करते लेकिन शक्तियों को, देवताओं में भी गणेश है, हनुमान है और भी देवताओं को ज्यादा याद करते हैं, तो वह कौन हैं? आप ही हो ना! आपको रोज़ याद करते हैं। पुकार रहे हैं - हे कृपालु, दयालु रहम करो, कृपा करो। जरा सी एक सुख शान्ति की बूंद दे दो। आप द्वारा एक बूँद के प्यासी हैं। तो दु:खियों का, प्यासी आत्माओं का आवाज हे शक्तियां, हे देव नहीं पहुंच रहा है! पहुंच रहा है ना? बापदादा जब पुकार सुनते हैं तो शक्तियों को और देवों को याद करते हैं। तो अच्छा प्रोग्राम दादी ने बनाया है, बाबा को पसन्द है। स्मृति दिवस तो सदा ही है लेकिन फिर भी आज का दिन स्मृति द्वारा सर्व समर्थियां विशेष प्राप्त की, अब कल से शिवरात्रि तक बापदादा चारों ओर के बच्चों को कहते कि यह विशेष दिन यही लक्ष्य रखो कि ज्यादा से ज्यादा आत्माओं को मन्सा द्वारा, वाणी द्वारा वा सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा किसी भी विधि से सन्देश रूपी अंचली जरूर देना है। अपना उल्हना उतार दो। बच्चे सोचते हैं अभी विनाश की डेट तो दिखाई नहीं देती है, तो कभी भी उल्हना पूरा कर लेंगे लेकिन नहीं अगर अभी से उल्हना पूरा नहीं करेंगे तो यह भी उल्हना मिलेगा कि आपने पहले क्यों नहीं बताया। हम भी कुछ तो बना देते, फिर तो सिर्फ अहो प्रभू कहेंगे इसलिए उन्हें भी कुछ-कुछ तो वर्से की अंचली लेने दो। उन्हों को भी कुछ समय दो। एक बूंद से भी प्यास तो बुझाओ, प्यासे के लिए एक बूंद भी बहुत महत्व वाली होती है। तो यही प्रोग्राम है ना कि कल से लेके बापदादा भी हरी झण्डी नहीं, नगाड़ा बजा रहे हैं कि आत्माओं को, हे तृप्त आत्मायें सन्देश दो, सन्देश दो। कम से कम शिवरात्रि पर बाप के बर्थ डे का मुख तो मीठा करें कि हाँ हमें सन्देश मिल गया। यह दिलखुश मिठाई सभी को सुनाओ, खिलाओ। साधारण शिवरात्रि नहीं मनाना, कुछ कमाल करके दिखाना। उमंग है? पहली लाइन को है? बहुत धूम मचाओ। कम से कम यह तो समझें कि शिवरात्रि का इतना बड़ा महत्व है। हमारे बाप का जन्म दिन है, सुनके खुशी तो मनायें।
बापदादा ने देखा कि अमृतवेले मैजारिटी का याद और ईश्वरीय प्राप्तियों का नशा बहुत अच्छा रहता है। लेकिन कर्म योगी की स्टेज में जो अमृतवेले का नशा है उससे अन्तर पड़ जाता है। कारण क्या है? कर्म करते, सोल कॉन्सेस और कर्म कॉन्सेस दोनों रहता है। इसकी विधि है कर्म करते मैं आत्मा, कौन सी आत्मा, वह तो जानते ही हो, जो भिन्न-भिन्न आत्मा के स्वमान मिले हुए हैं, ऐसी आत्मा करावनहार होकर इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराने वाली हूँ, यह कर्मेन्द्रियाँ कर्मचारी हैं लेकिन कर्मचारियों से कर्म कराने वाली मैं करावनहार हूँ, न्यारी हूँ। क्या लौकिक में भी डायरेक्टर अपने साथियों से, निमित्त सेवा करने वालों से सेवा कराते, डायरेक्शन देते, ड्यूटी बजाते भूल जाता है कि मैं डायरेक्टर हूँ? तो अपने को करावनहार शक्तिशाली आत्मा हूँ, यह समझकर कार्य कराओ। यह आत्मा और शरीर, वह करनहार है वह करावनहार है, यह स्मृति मर्ज हो जाती है। आप सबको, पुराने बच्चों को मालूम है कि ब्रह्मा बाप ने शुरू शुरू में क्या अभ्यास किया? एक डायरी देखी थी ना। सारी डायरी में एक ही शब्द - मैं भी आत्मा, जसोदा भी आत्मा, यह बच्चे भी आत्मा हैं, आत्मा है, आत्मा है.... यह फाउण्डेशन सदा का अभ्यास किया। तो यह पहला पाठ मैं कौन? इसका बार-बार अभ्यास चाहिए। चेकिंग चाहिए, ऐसे नहीं मैं तो हूँ ही आत्मा। अनुभव करे कि मैं आत्मा करावनहार बन कर्म करा रही हूँ। करनहार अलग है, करावनहार अलग है। ब्रह्मा बाप का दूसरा अनुभव भी सुना है कि यह कर्मेन्द्रियाँ, कर्मचारी हैं। तो रोज़ रात की कचहरी सुनी है ना! तो मालिक बन इन कर्मेन्द्रियों रूपी कर्मचारियों से हाल-चाल पूछा है ना! तो जैसे ब्रह्मा बाप ने यह अभ्यास फाउण्डेशन बहुत पक्का किया, इसलिए जो बच्चे लास्ट में भी साथ रहे उन्होंने क्या अनुभव किया? कि बाप कार्य करते भी शरीर में होते हुए भी अशरीरी स्थिति में चलते फिरते अनुभव होता रहा। चाहे कर्म का हिसाब भी चुक्तू करना पड़ा लेकिन साक्षी हो, न स्वयं कर्म के हिसाब के वश रहे, न औरों को कर्म के हिसाब-किताब चुक्तू होने का अनुभव कराया। आपको मालूम पड़ा कि ब्रह्मा बाप अव्यक्त हो रहा है, नहीं मालूम पड़ा ना! तो इतना न्यारा, साक्षी, अशरीरी अर्थात् कर्मातीत स्टेज बहुतकाल से अभ्यास की तब अन्त में भी वही स्वरूप अनुभव हुआ। यह बहुतकाल का अभ्यास काम में आता है। ऐसे नहीं सोचो कि अन्त में देहभान छोड़ देंगे, नहीं। बहुतकाल का अशरीरीपन का, देह से न्यारा करावनहार स्थिति का अनुभव चाहिए। अन्तकाल चाहे जवान है, चाहे बूढ़ा है, चाहे तन्दरूस्त है, चाहे बीमार है, किसका भी कभी भी आ सकता है इसलिए बहुतकाल साक्षीपन के अभ्यास पर अटेन्शन दो। चाहे कितनी भी प्राकृतिक आपदायें आयेंगी लेकिन यह अशरीरीपन की स्टेज आपको सहज न्यारा और बाप का प्यारा बना देगी इसलिए बहुतकाल शब्द को बापदादा अण्डरलाइन करा रहे हैं। क्या भी हो, सारे दिन में साक्षीपन की स्टेज का, करावनहार की स्टेज का, अशरीरीपन की स्टेज का अनुभव बार-बार करो, तब अन्त मते फरिश्ता सो देवता निश्चित है। बाप समान बनना है तो बाप निराकार और फरिश्ता है, ब्रह्मा बाप समान बनना अर्थात् फरिश्ता स्टेज में रहना। जैसे फरिश्ता रूप साकार रूप में देखा, बात सुनते, बात करते, कारोबार करते अनुभव किया कि जैसे बाप शरीर में होते न्यारे हैं। कार्य को छोड़कर अशरीरी बनना, यह तो थोड़ा समय हो सकता है लेकिन कार्य करते, समय निकाल अशरीरी, पावरफुल स्टेज का अनुभव करते रहो। आप सब फरिश्ते हो, बाप द्वारा इस ब्राह्मण जीवन का आधार ले सन्देश देने के लिए साकार में कार्य कर रहे हो। फरिश्ता अर्थात् देह में रहते देह से न्यारा और यह एक्जैम्पुल ब्रह्मा बाप को देखा है, असम्भव नहीं है। देखा अनुभव किया। जो भी निमित्त हैं, चाहे अभी विस्तार ज्यादा है लेकिन जितनी ब्रह्मा बाप की नई नॉलेज, नई जीवन, नई दुनिया बनाने की जिम्मेवारी थी, उतनी अभी किसकी भी नहीं है। तो सबका लक्ष्य है ब्रह्मा बाप समान बनना अर्थात् फरिश्ता बनना। शिव बाप समान बनना अर्थात् निराकार स्थिति में स्थित होना। मुश्किल है क्या? बाप और दादा से प्यार है ना! तो जिससे प्यार है उस जैसा बनना, जब संकल्प भी है - बाप समान बनना ही है, तो कोई मुश्किल नहीं। सिर्फ बार-बार अटेन्शन। साधारण जीवन नहीं। साधारण जीवन जीने वाले बहुत हैं। बड़े-बड़े कार्य करने वाले बहुत हैं। लेकिन आप जैसा कार्य, आप ब्राह्मण आत्माओं के सिवाए और कोई नहीं कर सकता है।
तो आज स्मृति दिवस पर बापदादा समानता में समीप आओ, समीप आओ, समीप आओ का वरदान दे रहे हैं। सभी हद के किनारे, चाहे संकल्प, चाहे बोल, चाहे कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क कोई भी हद का किनारा, अपने मन की नईया को इन हद के किनारों से मुक्त कर दो। अभी से जीवन में रहते मुक्त ऐसे जीवनमुक्ति का अलौकिक अनुभव बहुतकाल से करो। अच्छा।
चारों ओर के बच्चों के पत्र बहुत मिले हैं और मधुबन वालों की क्रोधमुक्त की रिपोर्ट, समाचार भी बापदादा के पास पहुंचा है। बापदादा हिम्मत पर खुश है, और आगे के लिए सदा मुक्त रहने के लिए सहनशक्ति का कवच पहने रखना, तो कितना भी कोई प्रयत्न करेगा लेकिन आप सदा सेफ रहेंगे।
ऐसे सर्व दृढ़ संकल्पधारी, सदा स्मृति स्वरूप आत्माओं को, सदा सर्व समर्थियों को समय पर कार्य में लाने वाले विशेष आत्माओं को, सदा सर्व आत्माओं के रहमदिल आत्माओं को, सदा बापदादा समान बनने के संकल्प को साकार रूप में लाने वाले ऐसे बहुत-बहुत-बहुत प्यारे और न्यारे बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
डबल फारेनर्स:- डबल फारेनर्स को डबल नशा है। क्यों डबल नशा है? क्योंकि समझते हैं कि हम भी जैसे बाप दूरदेश के हैं ना, तो हम भी दूरदेश से आये हैं। बापदादा ने डबल विदेशी बच्चों की एक विशेषता देखी है कि दीप से दीप जगाते हुए अनेक देशों में बापदादा के जगे हुए दीपकों की दीवाली मना दी है। डबल विदेशियों को सन्देश देने का शौक अच्छा है। हर ग्रुप में बापदादा ने देखा 35-40 देशों के होते हैं। मुबारक हो। सदा स्वयं भी उड़ते रहो और फरिश्ते बनकरके उड़ते-उड़ते सन्देश देते रहो। अच्छा है, आप 35 देश वालों को बापदादा नहीं देख रहा है और भी देश वालों को आपके साथ देख रहे हैं। तो नम्बरवन बाप समान बनने वाले हो ना! नम्बरवन कि नम्बरवार बनने वाले हो? नम्बरवन? नम्बरवार नहीं? नम्बरवन बनना अर्थात् हर समय विन करने वाले। जो विन करते हैं वह वन होते हैं। तो ऐसे हो ना? बहुत अच्छा। विजयी हैं और सदा विजयी रहने वाले। अच्छा और सभी को, जहाँ जहाँ जाओ वहाँ यह स्मृति दिलाना कि सभी डबल फारेनर्स को वन नम्बर बनना है।
अच्छा - बापदादा सभी माताओं को गऊपाल की प्यारी माताओं को बहुत-बहुत दिल से यादप्यार दे रहे हैं और पाण्डव चाहे यूथ हो, चाहे प्रवृत्ति वाले हो, पाण्डव सदा पाण्डवपति के साथी रहे हैं, ऐसे साथी पाण्डवों को भी बापदादा बहुत-बहुत यादप्यार दे रहे हैं।
दादी जी से:- आज के दिन क्या याद आता है? विल पॉवर्स मिली ना! विल पॉवर्स का वरदान है। बहुत अच्छा पार्ट बजाया है, इसकी मुबारक है। सभी की दुआयें आपको बहुत हैं। आपको देख करके ही सभी खुश हो जाते हैं, बोलो या नहीं बोलो। आपको कुछ होता है ना तो सब ऐसे समझते हैं हमको हो रहा है। इतना प्यार है। सभी का है। (हमारा भी सबसे बहुत प्यार है) प्यार तो है बहुत सभी से। यह प्यार ही सभी को चला रहा है। धारणा कम हो ज्यादा हो, लेकिन प्यार चला रहा है। बहुत अच्छा।
ईशू दादी से:- इसने भी हिसाब चुक्तू कर लिया। कोई बात नहीं। इसका सहज पुरुषार्थ, सहज हिसाब चुक्तू। सहज ही हो गया, सोते सोते। आराम मिला विष्णु के मुआफिक। अच्छा। फिर भी साकार से अभी तक यज्ञ रक्षक बने हैं। तो यज्ञ रक्षक बनने की दुआयें बहुत होती हैं।
सभी दादियां बापदादा के बहुत-बहुत समीप हैं। समीप रत्न हैं और सबको दादियों का मूल्य है। संगठन भी अच्छा है। आप दादियों के संगठन ने इतने वर्ष यज्ञ की रक्षा की है और करते रहेंगे। यह एकता सभी सफलता का आधार है। (बाबा बीच में है) बाप को बीच में रखा है, यह अटेन्शन बहुत अच्छा दिया है। अच्छा। सभी ठीक हैं।
वरदान:-
सर्व सम्बन्धों से एक बाप को अपना साथी बनाने वाले सहज पुरुषार्थी भव
बाप स्वयं सर्व सम्बन्धों से साथ निभाने की ऑफर करते हैं। जैसा समय वैसे सम्बन्ध से बाप के साथ रहो और साथी बनाओ। जहाँ सदा साथ भी है और साथी भी है वहाँ कोई मुश्किल हो नहीं सकता। जब कभी अपने को अकेला अनुभव करो तो उस समय बाप के बिन्दू रूप को याद नहीं करो, प्राप्तियों की लिस्ट सामने लाओ, भिन्न-भिन्न समय के रमणीक अनुभव की कहानियाँ स्मृति में लाओ, सर्व संबंधों के रस का अनुभव करो तो मेहनत समाप्त हो जायेगी और सहज पुरुषार्थी बन जायेंगे।
स्लोगन:-
बहुरूपी बन माया के बहुरूपों को परख लो तो मास्टर मायापति बन जायेंगे।
29-11-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
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29-11-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - यदि शिवबाबा का कदर है तो उनकी श्रीमत पर चलते रहो, श्रीमत पर चलना माना बाप का कदर करना''
प्रश्नः-
बच्चे बाप से भी बड़े जादूगर हैं - कैसे?
उत्तर:-
ऊंचे से ऊंचे बाप को अपना बच्चा बना देना, तन-मन-धन से बाप को वारिस बनाकर वारी जाना - यह बच्चों की जादूगरी है। जो अभी भगवान को वारिस बनाते हैं वह 21 जन्मों के लिए वर्से के अधिकारी बन जाते हैं।
प्रश्नः-
ट्रिब्युनल किन बच्चों के लिए बैठती है?
उत्तर:-
जो दान की हुई चीज़ को वापस लेने का संकल्प करते, माया के वश हो डिससर्विस करते हैं उन्हों के लिए ट्रिब्युनल बैठती है।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अविनाशी ज्ञान रत्नों से बुद्धि रूपी झोली भरकर मालामाल बनना है। किसी भी प्रकार का अहंकार नहीं दिखाना है।
2) सर्विस लायक बनकर फिर कभी ट्रेटर बन डिससर्विस नहीं करनी है। दान देने के बाद बहुत-बहुत खबरदार रहना है, दान दी हुई चीज़ वापस लेने का संकल्प भी न आये।
वरदान:-
डायरेक्ट परमात्म लाइट के कनेक्शन द्वारा अंधकार को भगाने वाले लाइट हाउस भव
आप बच्चों के पास डायरेक्ट परमात्म लाइट का कनेक्शन है। सिर्फ स्वमान की स्मृति का स्विच डायरेक्ट लाइन से आन करो तो लाइट आ जायेगी और कितना भी गहरा सूर्य की रोशनी को भी छिपाने वाला काला बादल हो, वह भी भाग जायेगा। इससे स्वयं तो लाइट में रहेंगे ही लेकिन औरों के लिए भी लाइट हाउस बन जायेंगे।
स्लोगन:-
स्व पुरुषार्थ में तीव्र बनो तो आपके वायब्रेशन से दूसरों की माया सहज भाग जायेगी।
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Todays Hindi Murli 28/11/24_Sonamukhi Rajyoga Meditation Centre.
28-11-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हें एक बाप से ही सुनना है और सुन करके दूसरों को सुनाना है''
प्रश्नः-
बाप ने तुम बच्चों को कौन-सी समझ दी है, जो दूसरों को सुनानी है?
उत्तर:-
बाबा ने तुम्हें समझ दी कि तुम आत्मायें सब भाई-भाई हो। तुम्हें एक बाप की याद में रहना है। यही बात तुम सभी को सुनाओ क्योंकि तुम्हें सारे विश्व के भाईयों का कल्याण करना है। तुम ही इस सेवा के निमित्त हो।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) यहाँ ही सब हिसाब-किताब चुक्तू कर आधाकल्प के लिए सुख जमा करना है। इस पुरानी दुनिया से अब दिल नहीं लगानी है। इन आंखों से जो कुछ दिखाई देता है, उसे भूल जाना है।
2) माया बड़ी जबरदस्त है, उससे खबरदार रहना है। पढ़ाई में गैलप कर आगे जाना है। एक बाप से ही सुनना और उनसे ही सुना हुआ दूसरों को सुनाना है।
वरदान:-
बेहद की दृष्टि, वृत्ति और स्थिति द्वारा सर्व के प्रिय बनने वाले डबल लाइट फरिश्ता भव
फरिश्ते सभी को बहुत प्यारे लगते हैं क्योंकि फरिश्ता सर्व का होता है, एक दो का नहीं। बेहद की दृष्टि, वृत्ति और बेहद की स्थिति वाला फरिश्ता सर्व आत्माओं के प्रति परमात्म सन्देश वाहक है। फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट, सर्व का रिश्ता एक बाप से जुटाने वाला, देह और देह के संबंध से न्यारा, स्वयं को और सर्व को अपने चलन और चेहरे द्वारा बाप समान बनाने वाला, सर्व के प्रति कल्याणकारी। ऐसे फरिश्ते ही सबके प्यारे हैं।
स्लोगन:-
जब आपकी सूरत से बाप की सीरत दिखाई देगी तब समाप्ति होगी।
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26-11-2024
“मीठे बच्चे - तुम हो त्रिमूर्ति बाप के बच्चे, तुम्हें अपने तीन कर्तव्य याद रहें - स्थापना, विनाश और पालना'' | |||||
प्रश्नः- | देह-अभिमान की कड़ी बीमारी लगने से कौन-कौन से नुकसान होते हैं? | ||||
उत्तर:- | 1. देह-अभिमान वालों के अन्दर जैलसी होती है, जैलसी के कारण आपस में लून-पानी होते रहते, प्यार से सेवा नहीं कर सकते हैं। अन्दर ही अन्दर जलते रहते हैं। 2. बेपरवाह रहते हैं। माया उन्हें बहुत धोखा देती रहती है। पुरूषार्थ करते-करते फाँ हो जाते हैं, जिस कारण पढ़ाई ही छूट जाती है। 3. देह-अभिमान के कारण दिल साफ नहीं, दिल साफ न होने कारण बाप की दिल पर नहीं चढ़ते। 4. मूड ऑफ कर लेते, उनका चेहरा ही बदल जाता है। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते। धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) मौलाई मस्ती में रहकर स्वयं को स्वतंत्र बनाना है। किसी भी बन्धन में नहीं बंधना है। माया चूही से बहुत-बहुत सम्भाल करनी है, खबरदार रहना है। दिल में कभी भी शैतानी ख्याल न आयें। 2) बाप द्वारा जो बेशुमार धन (ज्ञान का) मिलता है, उसकी खुशी में रहना है। इस कमाई में कभी भी संशयबुद्धि बन थकना नहीं है। स्टूडेन्ट लाइफ दी बेस्ट लाइफ है इसलिए पढ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान देना है।
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